Tuesday, May 19, 2009

निकल पड़े पांव धूप के


रौद्र रूप में प्रचंड प्रकोपी
आया सूरज तेज दिखाने
दुपहर के सूने मरुथल में
अलसाया सा गोते लगाने

संग अजगर सी लंबी सिसकी
लंबीं सांय सांय करती
लू लिपटाती अपनी जिह्वा
चारों दिक बाँहों में भरती

काँपती ठिठुरन पे अपनी
चमकाती तलवार चलाती
सूखे पत्तों के आंगन में
बेताला तांडव दिखलाती

दिन भर हाहाकार मचा कर
सारे जग को सता सता कर
सन्नाटे को और बढ़ा कर
गलियों में उत्पात मचाकर

नन्हें बालक की चोरी ज्यों
शाम को फिर पकडी जाती
आंखें तब चुपचाप झुका कर
सांध्य बयार में घुलमिल जाती

निकल पड़े जो पांव धूप के
विस्तृत फैले इस आंगन में
गरम हथेली ताप सेंकने
झुलस गया हाँ सारा जग ये

8 comments:

श्यामल सुमन said...

सूरज का सचित्र काव्यमय रौद्र-रूप पसन्द आया।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Udan Tashtari said...

नन्हें बालक की चोरी ज्यों
शाम को फिर पकडी जाती
आंखें तब चुपचाप झुका कर
सांध्य बयार में घुलमिल जाती

--वाह!! बहुत बेहतरीन तरीके से उकेरा है रौद्र रुप सूरज का!!

M VERMA said...

नन्हें बालक की चोरी ज्यों
शाम को फिर पकडी जाती

बिम्बो का अच्छा प्रयोग ---- बधाई

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर सूरज सौन्दर्य वर्णन!

रंजना said...

ग्रीष्म का इतना सुन्दर शब्द चित्रण..वाह !! बहुत बहुत सुन्दर रचना...

गौतम राजऋषि said...

शब्द सब के सब जैसे सचमुच का सूरज ले आये अपने विकराल रूप में...

Mansi said...

रौद्र रूप प्रचंड प्रकोपी
आया सूरज तेज दिखाने
दुपहर के सूने मरुथल में
अलसाया सा गोते लगाने
Wow...the words u use are really amazing. Good Job!!

दिगम्बर नासवा said...

वाह...........सूर्य की अगन से लाल लाल झुलसे हुवे शब्द.............पूरा मौसम जैसे उधेड़ कर सामने रख दिया...........फिर शाम का ठंडा फाहा भी रख दिया..........बहूत ही उम्दा रचना