Tuesday, June 16, 2009

जो सब कुछ पाने बैठे हैं- ग़ज़ल


जाने क्या ठाने बैठे हैं
वो जो अदना से बैठे हैं

हमको अब जब होश नहीं वो
हद की बातें ले बैठे हैं

ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं

कुछ ऐसे हैं, चैन से उकता
के जो ग़म पाले बैठे हैं

जाने क्या कुछ खो दें अब वो
जो सब कुछ पाने बैठे हैं

भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं

मेरी गज़लें जिक्र हैं उनका
लो! वो ये माने बैठे हैं

'दोस्त' अब उनको क्या परखें जो
ग़ैरों में जा के बैठे हैं

18 comments:

श्यामल सुमन said...

हमको अब जब होश नहीं वो
हद की बातें ले बैठे हैं

सुन्दर अभिव्यक्ति मानसी जी। अच्छी गजल।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Himanshu Pandey said...

"ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं"

पूरी गजल में सर्वश्रेष्ठ पंक्तियाँ । ठीक भी उतरती हैं इस ब्लॉग जगत की बहुत सी बातों पर ।

पूनम श्रीवास्तव said...

भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं
मेरी गज़लें जिक्र हैं उनका
लो! वो ये माने बैठे हैं

मानसी जी ,
आपकी गजलों की बात ही अलग है ..बहुत अच्छी लगी पंक्तियाँ.
शुभकामनाएं .
पूनम

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लिखा है, मानसी जी आपने. बधाई. :)

Unknown said...

khoob !
bahut khoob !

दिगम्बर नासवा said...

ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं

जाने क्या कुछ खो दें अब वो
जो सब कुछ पाने बैठे हैं

भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं

वाह...... khobsoorat ग़ज़ल और इन sheron में kamaal की adaaygi है.......... mazaa आ गया पढ़ कर

ajay saxena said...

'दोस्त' अब उनको क्या परखें जो
ग़ैरों में जा के बैठे हैं
...बहुत खूब मानसी जी ...

गौतम राजऋषि said...

"मेरी गज़लें जिक्र हैं उनका / लो! वो ये माने बैठे हैं"

अहा...क्या शेर है, उस्ताद!

वीनस केसरी said...

बहुत सुन्दर गजल कही है
बहर और कहन का बहुत सुन्दर निर्वहन किया है आपने
वीनस केसरी

संजीव गौतम said...

अच्छी ग़ज़ल है ख़ासकर ये शेर-

ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं
बधाई

admin said...

छोटी बहर की सुंदर गजल।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

मस्तानों का महक़मा said...

shabdo ka ek jaal buna hai aapne jisme zindgi ke rang bikhre huye se lagte hai.

apne shabdo ki pyaas ko poora mat hone dena, humesha use pyasa rakhna, pyaas badegi shabd bahar aayenge...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

मानसी जी ,
"ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं"
बहुत सुन्दर गजल......

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

जाने क्या कुछ खो दें अब वो
जो सब कुछ पाने बैठे हैं
भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं

मानोशी जी ,
अच्छी लगी गजल .....सरल शब्दों में लिखी हुयी
हेमंत कुमार

M VERMA said...

ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई

satish kundan said...

हमको अब जब होश नहीं वो
हद की बातें ले बैठे हैं.....दिल को छू गई आपकी गजल....मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है

मुकेश कुमार तिवारी said...

मानसी जी,

एक खूबसूरत गज़ल :-

समझाईश भी है:-

जाने क्या कुछ खो दें अब वो
जो सब कुछ पाने बैठे हैं

गुंजाईश भी है :-

भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

saawdhan: It's your voice said...

bahut bahut khoob .... mohatrama....