जाने क्या ठाने बैठे हैं
वो जो अदना से बैठे हैं
वो जो अदना से बैठे हैं
हमको अब जब होश नहीं वो
हद की बातें ले बैठे हैं
ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं
कुछ ऐसे हैं, चैन से उकता
के जो ग़म पाले बैठे हैं
जाने क्या कुछ खो दें अब वो
जो सब कुछ पाने बैठे हैं
भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं
मेरी गज़लें जिक्र हैं उनका
लो! वो ये माने बैठे हैं
'दोस्त' अब उनको क्या परखें जो
ग़ैरों में जा के बैठे हैं
18 comments:
हमको अब जब होश नहीं वो
हद की बातें ले बैठे हैं
सुन्दर अभिव्यक्ति मानसी जी। अच्छी गजल।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
"ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं"
पूरी गजल में सर्वश्रेष्ठ पंक्तियाँ । ठीक भी उतरती हैं इस ब्लॉग जगत की बहुत सी बातों पर ।
भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं
मेरी गज़लें जिक्र हैं उनका
लो! वो ये माने बैठे हैं
मानसी जी ,
आपकी गजलों की बात ही अलग है ..बहुत अच्छी लगी पंक्तियाँ.
शुभकामनाएं .
पूनम
बहुत अच्छा लिखा है, मानसी जी आपने. बधाई. :)
khoob !
bahut khoob !
ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं
जाने क्या कुछ खो दें अब वो
जो सब कुछ पाने बैठे हैं
भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं
वाह...... khobsoorat ग़ज़ल और इन sheron में kamaal की adaaygi है.......... mazaa आ गया पढ़ कर
'दोस्त' अब उनको क्या परखें जो
ग़ैरों में जा के बैठे हैं
...बहुत खूब मानसी जी ...
"मेरी गज़लें जिक्र हैं उनका / लो! वो ये माने बैठे हैं"
अहा...क्या शेर है, उस्ताद!
बहुत सुन्दर गजल कही है
बहर और कहन का बहुत सुन्दर निर्वहन किया है आपने
वीनस केसरी
अच्छी ग़ज़ल है ख़ासकर ये शेर-
ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं
बधाई
छोटी बहर की सुंदर गजल।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
shabdo ka ek jaal buna hai aapne jisme zindgi ke rang bikhre huye se lagte hai.
apne shabdo ki pyaas ko poora mat hone dena, humesha use pyasa rakhna, pyaas badegi shabd bahar aayenge...
मानसी जी ,
"ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं"
बहुत सुन्दर गजल......
जाने क्या कुछ खो दें अब वो
जो सब कुछ पाने बैठे हैं
भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं
मानोशी जी ,
अच्छी लगी गजल .....सरल शब्दों में लिखी हुयी
हेमंत कुमार
ख़ुद का इल्म नहीं है उनको
पर सब को जाने बैठे हैं
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई
हमको अब जब होश नहीं वो
हद की बातें ले बैठे हैं.....दिल को छू गई आपकी गजल....मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है
मानसी जी,
एक खूबसूरत गज़ल :-
समझाईश भी है:-
जाने क्या कुछ खो दें अब वो
जो सब कुछ पाने बैठे हैं
गुंजाईश भी है :-
भीगी इन पलकों पे जाने
कितने अफ़साने बैठे हैं
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
bahut bahut khoob .... mohatrama....
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