Friday, November 20, 2009

नन्हें फूल- रोज़ ही एक नया मज़ेदार कि़स्सा

"अब के इस मौसम में नन्हें
फूलों से महकी गलियाँ हैं"

इस शेर को जब लिखा था तो वो प्यारे-प्यारे, छोटे-छोटे बच्चे थे दिमाग़ में, जिन्हें पढ़ाने का मौक़ा मिला है इस साल। कक्षा किंडर्गार्टन से कक्षा दूसरी तक के बच्चे, ४ - ७ साल तक के।


शुरुआत में बड़ी परेशानी होती थी। मैं घबराई हुई सी इन कक्षाओं में जाती थी।  इतने छोटे बच्चों को पढ़ाने का कोई अनुभव नहीं था मुझे। मगर अब कोई २-३ महीने बाद, हर दिन एक खुशगवार दिन होता है और हर दिन के नये कि़स्सों को घर आकर याद कर के चेहरे पर अपने आप मुस्कराहट आ जाती है। रोज़ एक नया मज़ेदार क़िस्सा।

अभी कल की ही बात है। किंडरगार्टन के बच्चों को स्कूल में ही, लाइब्ररी ले कर जाना था। उनकी कक्षा से दूर, सीढ़ियों से ऊपर लाइब्ररी में ले जाना मतलब, पहले ही हिदायतें दोहरानी होती हैं-
"हम लाइन में कैसे चलते है?"
" मुँह पर उँगली रख कर...."
"क्या हम लाइन में चलते हुए अपने दोस्त से बात करते हैं?
"न-हीं--" (-कोरस में सभी-)
"जब हम सीढ़ी चढ़ते हैं तो क्या ज़रूरी है?"
"सीढ़ी की रेलिंग पकड़ना"
आदि आदि...
इस तरह से उनको (मैं बच्चों की लाइन की तरफ़ मुँह किये हुये, अपनी उँगली अपने होठों पर रखे हुये,  धीरे-धीरे क़दम दर क़दम पीछे की ओर चलते हुये) लाइब्ररी तक ले कर जाती हूँ। यहाँ बच्चे अपनी पसंद की किताब लेते हैं और एक बेंच पर बैठ कर सब बच्चों के किताब ले लेने तक प्रतीक्षा करते हैं।

कल देखा, बेंच पर बैठी, ये छोटी सी बच्ची, चार-साढ़े चार साल, की खूब खी-खी कर के हँस रही है।  मैंने पूछा कि क्या हुआ है? पास ही बैठी दूसरी बच्ची ने बताया, "मिसेज़ चटर्जी, फ़लाना इज़ टेलिंग दैट दे आर किसिंग" । मुझे हँसी आई, और मैंने कहा, "व्हाट इज़ इट हनी? " तो उस बच्ची ने अपनी किताब दिखाई, परी कथा थम्बलीना की कहानी में, आखिरी पन्ने पर राजकुमार और राजकुमारी पास-पास खड़े थे। वो कहने लगी, "दे आर किसिंग" । मैंने कहा, :" नो दे आर नाट..., दे आर स्टैंडिंग"। बच्ची ने थोड़े ध्यान से उस तस्वीर को फिर देखा और मुझे समझाते हुए कहा," येस, बट दे आर गोंइंग टु किस आफ़्टर" - (बस मन में यही कह पाई- जी अच्छा दादी अम्मा)

एक बच्चा है कक्षा पहली में, उसे मैंने कारीडर में चलते हुये नहीं देखा है कभी। वो अपने जूतों से लगातार फिसलते हुए ही चलता है। और फिर ब्रेक लगाते हुये, गिरते हुये, और फिर फ़िसलते हुये...हम टीचर भी अपना काम करते हैं, उसे रोज़ समझाते हैं, और वापस जाकर फिर चल कर आने को कहते हैं...आदि आदि, न वो सुधरा है अब तक, न हम :-)

सबसे अच्छा लगता है जब ये बच्चे खिल-खिल कर के हँसते हैं। छोटी-छोटी बातें इनको हँसाने के लिये काफ़ी होती हैं। कल एक खेल खिलवा रही थी बच्चों से। सभी एक गोलाकार में बैठे। एक बच्चे को खड़े होकर सबसे पहले अपनी उँगली को पेन्सिल मान कर हवा में अपना नाम लिखना था। फिर अपने सिर को पेन्सिल मान कर, फिर अपने पेट को , कुहनी को, आदि आदि...उनकी निश्छल हँसी देखते बनती थी।

रोज़ के कई कि़स्से...जाने कितने, इन दो महीनों में ही...जो सालों से इस उम्र के बच्चों को पढ़ा रहे हैं, उनके पास तो किस्सों का ख़ज़ाना होगा, इसमें भला क्या संदेह है...

13 comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर है आपका ये खज़ाना । बच्चों के संग बच्चे बनना अपने आप मे एक सुखद अनुभव है बधाई इस पोस्ट के लिये

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब। मज़ा आ गया।
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क्या स्टारवार शुरू होने वाली है?
परी कथा जैसा रोमांचक इंटरनेट का सफर।

Himanshu Pandey said...

कितना अनूठा अनुभव होगा इनके साथ रहना । आभार प्रविष्टि के लिये ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पोस्ट रोचक है!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

छोटे-छोटे बच्चों के साथ काम करने का आनन्द ही अलग होता है---बस आप भी कुछ समय के लिये बच्चे बन जाइये फ़िर देखिये मजा---जीवन के बेहतरीन पलों से गुजरेंगे आप्।
हेमन्त कुमार

Apanatva said...

baccho kee masoom bate bholapan aapako phir se jeene ko mil raha hai.kalpana kar sakatee hoo ki kitana aanand aa raha hoga .
hum sabke sath share karane ka shukriya .

अनूप शुक्ल said...

कितने तो फ़ूल खिले हैं आज की इस पोस्ट में! बहुत खूबसूरत!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुन्दर पोस्ट ....

रंजन (Ranjan) said...

बच्चे बहुत समझदार और नटखट हो रहे है...:)

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

फ़ूल खिले हैं बस फ़ूल खिले हैं..!!

- सुलभ

Arshia Ali said...

मानसी जी, आपको जन्मदिन की शुभकानाएँ।
आपको जीवन में इतनी मिलें खुशियाँ,
रखने के लिए उनको जगह कम पड़ जाए।

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क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।

Anonymous said...

रोचक पोस्ट !

नीरज गोस्वामी said...

आपने सच कहा...बच्चों के साथ बिताया हर पल अनमोल होता है...मिष्टी के आने के बाद इस बात का शिद्धत से अहसास हुआ...रोचक प्रसंग...
नीरज