वो स्कूल के आफ़िस के सामने, अन्य बच्चों के साथ, फ़र्श पर बैठा अपनी मां के आने का इंतज़ार कर रहा था। मुझे उसकी आँखों से दो बूँद आँसू ढुलकते दिखाई दिये। मैं उसे उसकी कक्षा में नहीं पढ़ाती पर, उसे स्कूल में रोज़ देखती हूँ। सो , मैं उसके पास जाती हूँ और कहती हूँ, " क्या बात है बेटे? तुम ठीक हो न? तुम्हारी मां अभी आती ही होंगी"।
वो मेरी तरफ़ नहीं देखता, और धीरे से कहता है, " मैं आपको देख कर मुस्कराया, आप वापस नहीं मुस्कराईं"। " ओह! आइ ऐम सो सारी बेटे, मैंने तो तुम्हें देखा ही नहीं।"
फिर मैं उसके साथ एक छोटा सा खेल खेलती हूँ, " चलो दोनों साथ मुस्करायें..एक...दो...और ये तीन" दोनों साथ मुस्कराते हैं और मैं अपने पीछे खड़े उसकी अभी पहुँचे मां को भी मुस्कराता पाती हूँ।
बच्चे कह पाते हैं...क्या हम?...
पिछले दिनों मेरे बचपन के स्कूल के एक सीनियर ने आर्कुट पर कुछ तस्वीरें लगाईं। वह साउथ अफ़्रीका में वह स्टेशन घूम आया जहाँ महात्मा गांधी को ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास कम्पार्ट्मेंट से उतार दिया गया था। उस घटना ने उनकी ज़िंदगी बदल दी और उन्होंने दुनिया को बदलने का सोच लिया। अचानक ही फिर से जैसे उस काले, पतले, सीधे-साधे आदमी के लिये एक बार श्रद्धा उमड़ आई मेरे मन में। कितनों में होती है हिम्मत...?
पिछले साल, मैंने अपने स्कूल में बुलींग प्रिवेन्शन को लेकर काफ़ी काम किया था। कई वर्कशाप में जाकर मैंने जाना कि मनोवैज्ञानिक या साइकोलॉजिकल बुलींग बहुत खतरनाक होती है, और बच्चों में, ख़ासकर लड़कियों में होती पाई जाती है। विशेषकर उनके साथ जो स्कूल में नये आते हैं। उनको अनदेखा करना, अलग-थलग कर देना, बात न करना, मुँह फेर लेना आदि...और मैं सोचती थी, बड़ों की दुनिया कहाँ अलग है?
आज सुबह स्कूल में ’आज का विचार’ पढ़ा गया, " मैं छोटे, बड़े सभी को सही सम्मान दूँगा।"
14 comments:
"बच्चे कह पाते हैं...क्या हम?"
क्योंकि हम बच्चों जैसा निश्छल कहाँ रह पाते हैं ?
काश हम उनकी तरह ही जीवन भर ही बने रहते !
अच्छा राईट अप !
नन्ही सी, कोमल सी भावना...
भावभीनी अभिव्यक्ति....
नन्ही सी, कोमल सी भावना...
भावभीनी अभिव्यक्ति....
सुन्दर पोस्ट!
सभी किस्से अलग थे, लेकिन आपने अलग थलग नहीं होने दिया, क्योंकि सब में एक बात मेल खाती थी, वो भावना का अहसास
" मैं छोटे, बड़े सभी को सही सम्मान दूँगा।"
-मैं भी.
" मैं छोटे, बड़े सभी को सही सम्मान दूँगा।"
-मैं भी.
बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट.....
अच्छा लगा पढ़ना
भावभीनी अभिव्यक्ति....
सुन्दर अभिव्यक्ति----
पूनम
awesome mansi
'बुलींग प्रिवेन्शन'की ज़रूरत ना केवल स्कूलों में है बल्कि हर क्षेत्र में बुलींग prevent होनी चाहीए.
-स्कूलों में अगर यह शुरुआत है की हर छ्होटे बड़ों को सम्मान देने का भाव बच्चों में आ गया..तो बहुत बड़ी बात है.
एक सकरात्मक सोच और शुरुआत.
bahut prearana mili is post se.
thanku! bole to dhanyawaad!
बुलींग एक सामाजिक रोग है...हर स्तर पर इसे रोकना चाहिए...बुलिग़ मानसिक तौर पर विकृत लोग ही करते हैं...या वो जो इसका शिकार हो चुके हैं...अच्छी पोस्ट.
नीरज
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