छू आई बादल के
गाँव |
बहुत दिनों के
बाद सखी री,
उमड़ घुमड़ कर
गरजी बरसी,
बीते मौसम में हो आई,
धो आई मैं स्मृति के ठाँव |
कुनमुन सी ये
धूप सुनहरी,
बस इक क्षण की
बनी सहचरी ,
फिर पायल बन रुनझुन में ढल,
सज गई दो सखियन के पांव |
मछली कंटक
फँसी मचलती,
प्रीति डोर से
बंधी तड़पती,
साजन जो बिछड़े इस सावन,
हृदय प्राण सब लग गये दांव |
छू आई बादल के गाँव ।
बहुत दिनों के
बाद सखी री,
उमड़ घुमड़ कर
गरजी बरसी,
बीते मौसम में हो आई,
धो आई मैं स्मृति के ठाँव |
कुनमुन सी ये
धूप सुनहरी,
बस इक क्षण की
बनी सहचरी ,
फिर पायल बन रुनझुन में ढल,
सज गई दो सखियन के पांव |
मछली कंटक
फँसी मचलती,
प्रीति डोर से
बंधी तड़पती,
साजन जो बिछड़े इस सावन,
हृदय प्राण सब लग गये दांव |
छू आई बादल के गाँव ।
13 comments:
मानसी,
कविता के भाव बहुत सुन्दर हैं पर अगर बुरा न मानो तो एक सुझाव दे दूँ?
धो आई स्मृतियों के ठाँव में मात्रा की अधिकता,गीत के प्रवाह को बाधित कर रही है। प्रवाह बहुत सुन्दर चल रहा था पर मात्रा की अधिकता खटक रही है..तुम्हारे गाने में शायद ठीक पड़ जाये..अलाप में..
बहुत सुन्दर गीत है..हमेशा की तरह से..
स्नेह
शैलजा
आपकी रचना बहुत सुन्दर है!
यह चर्चा मंच में भी चर्चित है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/02/blog-post_5547.html
बेहद भावपूर्ण सुन्दर गीत
Manoshi ji,
Bahut sundar laga apaka yah geet----prakriti aur shabdon kee achchhee jugalabandee.
Poonam
सुन्दर अभिव्यक्ति!
कुनमुन सी ये
धूप सुनहरी
बस इक क्षण की
बनी सहचरी
फिर पायल बन रुनझुन में ढल
सज गई दो सखियन के पांव
bahut meethi kavita
sunder pyara geet.......
Bahut accha laga........
अच्छा गीत है।
.... प्रसंशनीय !!!
मन-भावन...
इसलिये क्योकी पड कर पुरानी किताबो के पीले / काले कत्थई पन्नो सी सुगन्ध आती है....मुझे !!
मानसी जी
बहुत बहुत बहुत......मनभावन कविता
क्या खूब लिख दिया आपने...
मछली कंटक
फँसी मचलती
प्रीत के बंधन
बंधी तड़पती
साजन जो बिछड़े इस सावन
हृदय प्राण सब लग गये दांव
पुन: वाह
बहुत अच्छा नवगीत है.
sundar geet hai,yah bhi kar ke dekhe...chu aai badal ke paav.
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