Sunday, July 25, 2010

जगत में झूठी देखी प्रीत- गुरु पूर्णिमा पर





जगत में झूठी देखी प्रीत ।
 अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत ॥

मेरो मेरो सभी कहत है, हित सों बाध्यो चीत ।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत ॥

मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत ।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत ॥

9 comments:

RAJENDRA said...

जगत में झूटी देखि प्रीत
अपने ही सुख सिउ सभ लागे क्या दारा क्या मीत
मेरो मेरो सभे कहत है हित सिउ बाधियो चीत
अंत काल संगी नहीं कोऊ इह अचरज की रीत
मन मूरख अजहू नह समुझत सिख दे हारिएओ नीत
नानक भौजल पारि परे जौ गावे प्रभ के गीत :२/३/६/३८/४७

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत अच्छा लगा। कई बार सुना।

सूबेदार said...

मै पहली बार आपकी कबिता पढ़ा
बहुत अच्छी प्रस्तुतु
धन्यवाद

Alpana Verma said...

बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.
बहुत दिनों बाद सुना.
आभार.

36solutions said...

सुन्‍दर ... धन्‍यवाद.

Pawan Kumar said...

अच्छी प्रस्तुति.....गुरु पूर्णिमा पर गुरु नानाक की वाणी सुनाने का शुक्रिया
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत ।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत ॥

Smart Indian said...

Divine! Thanks!

शरद कोकास said...

गुरुवाणी सुनने के साथ साथ गुनने के लिये भी होती है ।

अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ said...

अच्छा लगा यह भजन।
मेरो मेरो सभी कहत है, हित सों बाध्यो चीत ।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत ॥