Thursday, September 26, 2013

पतझड़ की पगलाई धूप



पतझड़ की पगलाई धूप

भोर भई जो आँखें मींचे
तकिये को सिरहाने खींचे
लोट गई इक बार पीठ पर
ले लम्बी जम्हाई धूप
अनमन सी अलसाई धूप


पोंछ रात का बिखरा काजल
सूरज नीचे दबता आँचल
खींच अलग हो दबे पैर से
देह-चुनर सरकाई धूप
यौवन ज्यों सुलगाई धूप


फुदक फुदक खेले आँगन भर
खाने-खाने एक पाँव पर
पत्ती-पत्ती आँख मिचौली
बचपन सी बौराई धूप
खिल-खिल खिलती आई धूप
पतझड़ की पगलाई धूप
(चित्र साभार: गूगल सर्च इमेज)

19 comments:

Sundeep Kumar tyagi said...

बेहद गज़ब रचना, वाह कमाल ही कर दिया।आगामी की प्रतीक्षा में....
संदीप

Vinay said...

सुन्दरम्

---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

रंजू भाटिया said...

सुन्दर एहसास ..सुन्दर भाव लगे आपकी इस रचना के

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत रचना मानोशी जी...वाह...इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है...लाजवाब.
नीरज

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत रचना मानोशी जी...वाह...इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है...लाजवाब.
नीरज

mehek said...

पोंछ रात की बिखरी काजल
सूरज नीचे दबा था आंचल
खींच अलग हो दबे पैर से
देह आँचल सरकाई धूप
यौवन ज्यों सुलगाई धूप

bahut pyari pagli dhoop hai,sunder sunder rachana badhai.

रंजना said...

उफ़ ....क्या कहूँ......बहुत दिनों बाद प्रकृति वर्णन पर इतनी सुन्दर रचना पढी मैंने..

बस.....निःशब्द कर दिया आपने....

शब्द चित्रण,बिम्ब विधान,प्रवाहमयता....सब अद्वितीय...!!!

शब्दों की तूलिका से आपने ऋतू को सजीव चित्रित कर दिया...वाह !!!

गौतम राजऋषि said...

उफ़्फ़्फ़...अद्‍भुत है ये गीत

सारी तारिफ़ों से परे
अनमन सी अलसाई धूप
यौवन ज्यों सुलगाई धूप
पतझड़ की पगलाई धूप

...वाह !!!

अनिल कान्त said...

aapne apni is rachna mein kamaal kar rakha hai .........iska pravaah aur shabdon ka sanjog bahut adbhud hai

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

मानसी जी ,
पूरा गीत बहुत बढ़िया है पर ये पंक्तियाँ कमाल की हैं ........
पोंछ रात का बिखरा काजल
सूरज नीचे दबा था आंचल
खींच अलग हो दबे पैर से
देह आँचल सरकाई धूप
यौवन ज्यों सुलगाई धूप
हेमंत

जयंत - समर शेष said...

Bahut sundar.

~Jayant

जयंत - समर शेष said...

अति सुंदर रचना है।
बधाई आप को।
~जयंत

हरकीरत ' हीर' said...

पोंछ रात का बिखरा काजल
सूरज नीचे दबा था आंचल
खींच अलग हो दबे पैर से
देह आँचल सरकाई धूप
यौवन ज्यों सुलगाई धूप


अति सुंदर ...!!

दिगम्बर नासवा said...

भोर भई जो आँखें मींचे
तकिये को सिरहाने खींचे
लोट गई इक बार पीठ पर
ले लम्बी जम्हाई धूप
अनमन सी अलसाई धूप

खूबसूरत कल्पना संसार......धुप अक्सर अलसाई हुयी लगती है ऐसे ही
अद्भुद रचना, मज़ा आ गया

क्या कहूँ.....! said...

वाह..! वाह...!! वाह...!!! कोई दूसरा शब्द हो ही नहीं सकता इन कोमल सुन्दर भावों की सफल अभिव्यक्ति के लिए - वाह....!!!!

सुमन

Tarun said...

बहुत कम शब्द में कहूँगा - लाजवाब, बेहतरीन

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

main to bauraa hi gayaa hun....pliz mujhe vaapas to lautaayiye.....!!

Dr. Shailja Saksena said...

bahut hi sunder manoshi....bahut hi sunder bhaav, bimb aur kalpna,,,badhai ho!!

shailja

Barthwal said...

पतझड की पगलाई धूप....धूप निकलने का अहसास और इसमे बिखरे शब्द अति सुंदर
-प्रतिबिम्ब
www.merachintan.blogspot.com