Tuesday, August 04, 2015

गुरु पूर्णिमा पर - माँ तुम प्रथम गुरु बनी मेरी...

मां तुम प्रथम बनी गुरु मेरी
तुम बिन जीवन ही क्या होता
सूखा मरुथल, रात घनेरी


प्रथम निवाला हाथ तुम्हारे
पहली निंदिया छाँव तुम्हारे
पहला पग भी उंगली थामे
चला भूमि पर उसी सहारे
बिन मां के है सब जग सूना
जैसे गुरु बिन राह अंधेरी


जिह्वा पर भी प्रथम मंत्र का
उच्चारण तो मां ही होता
शिशु हो, युवा, वृद्ध हो चाहे 
दुख में मां की सिसकी रोता
द्वार बंद हो जाएँ सारे 
माँ के द्वार न होती देरी


मां की पूजा विधि विधान क्या
फूल न चंदन, मंत्र सरल सा
प्रेम पुष्प अँजुरी में भर कर 
गुरु के चरणों अर्पित कर जा
आशीषों की वर्षा ऐसी 
बजे गगन में मंगल भेरी


मां तुम प्रथम बनी गुरु मेरी

--Manoshi

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