Saturday, February 18, 2017

मुहब्बत

मुझे इस ख़याल से मुहब्बत है
कि तुम्हें मुहब्बत है मुझसे।

ख़यालों की दीवानगी
में भटकती हूँ ,
किसी कहानी के किवाड़ के पीछे
छुप जाती है हक़ीक़त,
मेरी तन्हाई पे गिरती है बिजली ,
रूह चौंकती है,
पोर-पोर में बसे मिलते हो तुम,
सराबोर तुमसे मैं
तीर बन जाना चाहती हूँ,
उस पागलपन के चक्रव्यूह से निकल
किसी बादल पर जा कर अड़ जाना
चाहती हूँ ,
जो झमाझम बरस पड़े
तो भीग जाए तुम्हारा तन, मन, रूह
उस कठिन धरती पे बो आऊँ एक बीज
कल जो पौधा बने तो उस की छांव मेरी हो,
मुझे उस छांव से मुहब्बत है कि
तुम रोपोगे वह छांव
मुझे उस खयाल से मुहब्बत है कि
तुम हक़ीक़त हो मेरी,
मुझे मुहब्बत है तुमसे...

--मानोशी

2 comments:

Rubi Dani said...

कितना सूंदर वर्णन

Rubi Dani said...

कितना सूंदर वर्णन