Wednesday, January 18, 2006

क्या लिखूं...

जब भी अनूप शुक्ला जी से नेट पर मुलाकात होती है, बस एक ही बात सुनने को मिलती है,"मानसी कुछ लिखो, लेख लिखो, आलस त्यागो, लिखो...।" उनके कहने से समझ आता है कि ब्लाग पर लिखना है तो ये ध्यान रहे कि ये लेख या कविता जो भी है कई आँखों से हो कर गुज़र सकती है इसलिये उसी हिसाब से लिखना पडेगा। यही सोच रही थी, कि अगर किसी को किसी के ब्लाग पर लिखा पसंद नहीं आता है तो वो क्या करे? कविता बोर लगती है, विचार मेल नहीं खाते...तो? भई, आपको पूरी आज़ादी है, न पढ़ने की, मत पढिये, या पढ कर भूल जाइये। तो खैर...नारद पर रोज़ नये नये ब्लाग पर नये नये विषय पढती रहती हूं। हैरानी होती है कि जीवन के एक छोटे से पहलू को भी किस तरह ब्लागर शब्दों में पिरो कर एक सुन्दर माला बना डालते हैं। सुनील जी के ब्लाग की तो खासियत ही यही है कि एक तुच्छ सी लगने वाली बात को वे बडी खूबसूरती के साथ कह जाते हैं और पढने वाला सोचने पर मजबूर हो जाता है। आशीष के ब्लाग खाली पीली पर देखा कि रेल के एक घंटे के सफ़र में भी उन्होंने किस तरह मटेरियल ढूँढ निकाला और बडे ही मज़ेदार तरीके से पूरी गाथा कह गये। और अनूप शुक्ला जी तो खैर हमारे चैट को भी मसालेदार चाट के रूप में पेश करने के काबिल हैं। असली बात है पोसिटिव और कन्स्ट्रक्टिव सोचने की। मगर बात हो रही थी मेरे लिखने की। जब लिखने की बात सोची तो लगा क्या लिखूं। सच पूछें तो कुछ भी नहीं सूझा। क्या सच मेरे जीवन में ही नहीं होता कुछ कि लिख सकूं? अगली बार सोच कर लिखूंगी। आप सब अपना लिखना जारी रखें। सिर्फ़ मज़ा ही नहीं काफ़ी जानकारी भी मिलती है आप सब के लिखने से और कहानी-कविताओं का भी आनंद मिलता रहता है। रचनाकार भी बहुत अच्छा काम कर रहा है। ओह हां, दो दिन पहले अभिव्यक्ति पर देखा, नया स्तंभ शुरु हुआ है, हिन्दी ब्लागिंग के बारे में। हमारे ब्लाग जगत के कुछ चिट्ठों के नाम दिखे वहां। पता चला, पूर्णिमा वर्मन को प्रवासी भारतीय की मीडिया श्रेणी में सम्मान भी मिल रहा है। ये बहुत हर्ष की बात है। उनको बधाई। आज बस इतना ही...

3 comments:

अनूप शुक्ल said...

लिखने के लिये कहा था । ये बात इतनी बुरी लग गई कि हमको चाट वाला बना दिया।बहरहाल
देखो लिखने में मजा आया न!उधर आशीष के
यहां खाली पीली में बोतल-ढक्कन समस्या पर अपनी राय बताओ जरा!पूर्णिमाजी को सम्मानित किये जाने पर बधाई।

Pratik Pandey said...

देखिए, 'क्‍या लिखूं' कहते-कहते आपने काफ़ी कुछ लिख दिया है। इसलिये हर रोज़ अगर आप यही सोच कर कम्‍प्‍यूटर के सामने बैठें, तो भी हर दिन एक नयी प्रविष्टि बन जाएगी। :)

जयप्रकाश मानस said...

अनुप जी को धन्यवाद, जिनकी प्रेरणा से आपने यहाँ कुछ लिखने का सच्चा साहस किया है । छत्तीसगढ के एक निठल्ले की ओर से जो बिना कहे भी किसी न किसी से बतियाना चाहता है ।