बचपन में मीनाबज़ार जाया करते थे हम। उस बड़े वाले झूले पर झूलना और वहाँ पापकार्न और काटन कैंडी(बुढिया के बाल कहते थे शायद उसे) खाने का अलग मज़ा था। अभी पिछले सप्ताह सुना कि यहाँ भी ऐसा ही एक मेला लगा है। शहर से बहुत दूर कंट्रीसाइड में लगा हुआ है ये मेला। हर साल इसी वक्त लगता है। तो पिछले सप्ताहांत को वहाँ हो आये। बचपन के दिनों की यादें ताज़ा हो गयीं। यहाँ गाय, बछड़े, भेड़, बकरियाँ भी मेले का हिस्सा थीं। इन सब की प्रदर्शनी लगी थी। ताज़े फल और सब्ज़ियों की खरीद-फ़रोख़्त भी हो रही थी। मगर वहीं काटन कैंडी और पापकार्न और वही बड़ा वाला झूला और वही पैसे दे कर बंदूक से गुब्बारा फोड़ कर पुरस्कार पाना, सब कुछ एक जैसा। एक मिनट के लिये लगा कि अपने बचपन में फिर पहुँच गये हैं हम। कुछ तस्वीरें -
मेले में इस झूले के बग़ैर काम कैसे चले
मेले में बछड़े की देखभाल करती लड़की
पुतला बना नाचता आदमी
ग़ुब्बारे फोड़ कर जीतो खिलौने
१९२० साल का एक विंड मिल
5 comments:
मेले हमारे बचपन की यादों के अभिन्न अंग रहे हैं. आपने फिर से यादे ताजा करवा दी.
चलिए आप की वजह से वहाँ का मेला देखने को मिला ।
वाह, खुब रही मेले की झांकी.
बहुत सी मेरी यादें भी वापस ले आयीं।
आपके 'संगीत' से मैं यहाँ आ पहुँचा। देखा यहाँ तो मेला लगा हुआ है। वाकई बचपन याद आ गया। आप संगीत यात्रा भी जारी रखिये, अद्भुत जानकारी दी गई है। हालाँकि उसस चिट्ठे पर टिप्पणी करना संभव नहीं है क्योंकि मेरा ब्लॉगर पर खाता नहीं है। इसलिए यहीं पर अपनी बात कह दी।
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