Thursday, February 22, 2007
चिट्ठाजगत और अनजाने दोस्त
मेरे खयाल से २ साल हो गये अब तो इस जगत में मुझे। हमेशा लिखना नहीं हो पाता। जब लिखना शुरु किया था, उस वक्त कुछ ही लोग थे ब्लागजगत में। अब तो बहुत लोग इस कुटुंब के सदस्य बन गये हैं। मैंने जब बिल्कुल शुरु में ब्लाग लिखना शुरु किया तब पोस्ट लिख कर ये समझ नहीं आया कि सही पोस्ट हुआ है या नहीं, यहाँ तक कि ब्लाग लिखने का क्या मतलब हो सकता है ये भी नहीं पता था। बेझिझक रवि रतलामी जी को ईमेल कर डाली। उन्होंने पूरी तकनीकी जानकारी दी और गूगल समुह पर भी बात डाल दी। रमन कौल जी को भी ईमेल किया मैंने, उनका भी जवाब आया। बहुत सारी टिप्पणियाँ मिलीं। दिल बाग़ बाग़ हुआ। मेरी पहली पोस्ट थी एक बे-बहर ग़ज़ल, उसकी भी क्या तारीफ़ हुई। तो खैर, उत्साह बढा और खूब कवितायें लिखने लगी। फिर भी टिप्पणियाँ। और फिर अनूप शुक्ल जी (जो आज भी उसी तरह लिखते हैं जैसे पहले लिखते थे) से बात हुई चैट पर। उन्होंने प्रोत्साहित किया कि मैं लेख लिखूँ। उस वक्त मैं बेरोज़गार हुआ करती थी। अनूप जी का भारत में जागने का समय और मेरे यहाँ सुबह बेरोज़गारी का समय । इतने भले आदमी और अच्छा दोस्त सही मायनों में मुझे यहीं मिला। उनकी माँ से, पत्नी से बात हुई, बहुत प्यारी। उनके कहने पर कुछ ज्योतिष पर लेख लिखे मैंने, जिसकी बदौलत और लोगों से जान पहचान बढ़ी। ई-स्वामी जैसा ईमानदार और दिल का अच्छा दोस्त मुझे ब्लाग लेखन की वजह से ही मिला। मेरा कम्प्यूटर का ज्ञान ज़रा...। तो बस ई-स्वामी जलते भुनते हुये..."आपने फिर गड़बड़ की, मुझे यकीन नहीं होता आपके दोनों भाई आई.टी. में हैं" और मेरा कम्प्यूटर फिर चलने लगता है (डाँट सुन लेती हूँ मैं, क्या करूँ...)। उधर अनूभुति-अभिव्यक्ति की संपादिका, पूर्णिमा वर्मन जो समयाभाव में ब्लाग पर ध्यान नहीं दे पाती हैं से भी इसी तरह बातें होती रहीं। अनूपदा, रजनी भाभी, समीर, प्रत्यक्षा सभी से कुछ कुछ अपनों जैसे रिश्ते हो गये हैं। अब भले ही पहले जैसा लिखना न हो, पर ये कभी न टूटने वाले रिश्ते हमेशा रहेंगे। चिट्ठाकार जगत और चिट्ठाकारी को मेरा सलाम।
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16 comments:
बिलकुल सही लिखा मानसी । बिना देखे बिना मिले भी कैसे अनजाने रिश्ते बन जाते हैं । इंतरनेट के अदृश्य जाल में बँधे हमसब ।
लेकिन तुम लिखा करो, खूब लिखा करो । हमें इंतज़ार रहता है पढने का
सच चिट्ठा जगत हमें अनजाने लोगो से मिलाता है उनके पास लाता है। न मिलते हुऐ भी हम बहुतों को अपने करीब पाते हैं पर यह भी सच है कि कुछ से दूर चले जाते हैं।
चिट्ठा लेखन की दूसरी वर्षगाँठ पर आपको हार्दिक बधाई!
चिट्ठा जगत में मैंने सबसे पहली टिप्पणी आपके ही चिट्ठे पर की थी और यह आपके लेखन की प्रेरणा ही थी कि टिप्पणी करने के कुछ ही मिनट बाद मेरा चिट्ठा भी अस्तित्व में आ चुका था। इसलिए चिट्ठाकारी के क्षेत्र में मेरे प्रवेश का सारा श्रेय आपको ही जाता है, भले ही मेरे चिट्ठे को आपकी पहली टिप्पणी मिलने का इंतजार आज तक है।
मानोशी दी,
ये क्या ? बड़ा ही सेंटीमेंटल लेख लिख दिया आपने !
लेकिन ये तो सच है कि हिन्दी चिठठाजगत एक विश्व परिवार बन गया है। सब एक दूसरे से कितने जुडे हुये है !
आशीष
अजी इस दुनिया की यही तो खासियत है जो एक बार यहाँ आया यहीं का होकर रह गया। जाना चाहे तो भी जा नहीं सकता। कुछ लोग महाव्यस्त होने से लिखना छोड़ भले ही गए पर चिट्ठाजगत को भूले नहीं। गाहे बगाहे आ ही जाते हैं पढ़ने।
आप भाग्यशाली हैं जो ऐसे दोस्त पा सकी.
चिट्ठाकारी नें सचमुच अजब मित्रताएं करने की राह सुलभ की हैं.
जीतू हिंदिनी साईट सेट करवाने कुवैत से दो रात चैट पर साथ रहे थे. यही व्यव्हारिक तत्परता हमारे समूह की सबसे बडी खासियत है!
चिट्ठाजगत और चिट्ठाकारी के बारे मे मेरे भी कुछ ऐसे ही अहसास हैं, मुझे तो कुछ भी पता नही था (अब भी नही है!)बस ऐसे ही अनजान मित्रों से पूछती चली गई और गिरते-पडते चलती जा रही हूँ!
द्य्ष्यंत की पंक्तियां थोड़े फेर बदल से
चलो ये यादगारों की अंधेरी कोठरी खोली
मिले जो चार छह चेहरे, वो पहचाने लगे मुझको
हाँ प्रत्यक्षा। आप तो प्रेरणा रहीं हैं मेरी कहानी लेखन की (एक ही लिखी है अब तक वैसे)
उन्मुक्त, वो दूर होते हैं इसी लिये दूर जाते हैं। अच्छे दोस्त हमेशा करीब ही होते हैं।
सृजन शिल्पी, मुझे पता नहीं था कि आपने मेरे लेख से प्रेरित हो कर ब्लागिंग शुरु की। यकीं जानिये, मैं आपके लेख पढ़ती हूँ। अब की बार आलस छोड़ टिप्पणी भी करूँगी।
हाँ आशीष, तुमसे कभी वैसे बात तो नहीं हुई है, ई मेल और तुम्हारे ब्लाग के ज़रिये तुम्हें जानती हूँ। मेरा एक ईमेल लिखना बाक़ी है तुम्हें, वक्त मिलते ही लिखूँगी।
शिरीश सच कहा तुमने।
संजय शुक्रिया।
हाँ, स्वामी। मेरा ब्लाग अभी भी नहीं खुल रहा है IE6 के साथ। तुम्हारे कहने पर firefox से ही ये ब्लाग पोस्ट हुआ है। जल्दी हल निकालो। :-)
हाँ रचना, आप देखेंगी कि एक दिन बहुत कुछ जान चुकी हैं। लिखते रहिये।
राकेश जी आप भी उन दोस्तों में हैं मेरे, बस फ़र्क इतना कि आपसे कविता लेखन की वजह से संपर्क हुआ। आपसे शीघ्र मिलने की भी उम्मीद है।
मानोषी !
अगर यूँ कहें तो कैसा लगेगा ?
तुम्हें जानना और तुम से मिलना इस 'कम्बख्त ब्लौगिंग' की सब से अच्छी उपलब्धि रही ...
अनूप (दा) और रजनी भाभी
अगर कोई मुझसे पूछे कि हिंदी ब्लाग जगत का सबसे खतरनाक ब्लागर कौन है तो हम कहेंगे- मानोसी। :) महीनो बाद जब एक लेख लिखा इन्होंने और वो नारद पर नहीं आया तो हमसे कहा अब तो जीतू की खैर नहीं।:) इनके अनूपदा दुनिया में सबसे अच्छे, इनके देवर दुनिया में सबसे प्यारे इनके ये सबसे लवली, इनके वो सिंपली अमेजिंग। मतलब दुनिया में जो कुछ सबसे बेहतरीन है उसपर मानसी का कब्जा है! अजब तानाशाही है भाई! इस बेहतरीन लेख पर कमेंट की कोशिश करते-करते कल से हार गये हुआ नहीं और अभी-अभी धमकी -आपका कमेंट अभी तक नहीं आया। बहरहाल बधाई तमाम उपलब्धियों के लिये। कामना है कि खूब लिखो और इसी तरह लोगों पर अपनी दादागिरी चलाती रहो चाहे वो तुम्हारे अनूपदा हों, स्वामी हों, समीरलाल हों या और कोई बेचारा........।:)
शुभकामनायें!
बहुत गजब की उपलब्धियाँ रहीं. वाह वाह. हमारी भी इसी ब्लाग के चलते आपसे मुलाकात हो गई, यह तो हमारी उपलब्धियों की सूची में है. :)
बढ़िया लगा पढ़कर लेखा जोखा.
आपके अनुभवों की संश्लिष्टता के कायल हम तबसे हैं जब ब्लॉगिंग या उस पर शोध शुरू नहीं किया था। आपको कुछ और विचार साझा करने होंगे। आपको टैग किया गया है। यहां देखें
Mai abhi 18 saal ka hu aur mujhe blogging karne ka bahut shauk hai, aap logo ka aashirwaad chahuga aur puri ummed karuga ki aap log aashirwaad pradaan bhi karege, bas is chote se dimaak mein jo bhi aata hai turant likh dalta hu.... aasha karuga ki aap log meri sahayta awashya karege. dhanyawaad
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