टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे,
हो किसी का प्यार लेकिन , प्यार वो मेरा नहीं है।
रख नहीं पाया मान निज जो, प्यार वो कैसे करेगा?
हीनता से ग्रस्त है जो, दीनता ही दे सकेगा।
द्वार पर तेरे खड़ा हूँ, स्नेह का लेकर निमंत्रण,
एक चुटकी भीख को यह दीन का फेरा नहीं है।
हो किसी का प्यार लेकिन, प्यार वो मेरा नहीं है।
है विदित, होती रही है प्यार की उद्दाम धारा,
बँध सके जो बंधनों से और ना निज कूल से।
राह में अवरोध कोई सर उठाये,
यह बहा दे, तोड़ दे, ढाये उखाड़े मूल से।
है अगर यह प्यार तो आश्वस्त हूँ मैं
इस प्रभंजन ने प्रबल, यह मन मेरा घेरा नहीं है|
हो किसी का प्यार लेकिन प्यार वो मेरा नहीं है।
प्यार है ले बहे जो, मन्द मन्धर गति निरंतर,
जी उठे स्पर्श पाकर हाँफ़ती मरुभूमि बंजर।
मान रखता, मान देता, मधुर मंगल रूप कोमल,
प्यार का जो स्वप्न मेरा क्या वही तेरा नहीं है?
टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे,
हो किसी का प्यार लेकिन , प्यार वो मेरा नहीं है।
--अचला दीप्ति कुमार
(मैं अचला जी के अनुमति के साथ उनकी इस कविता को यहाँ प्रकाशित कर रही हूँ। ये मेरी प्रिय कविताओं में से एक है। )
5 comments:
बहुत सुंदर और सार्थक कविता है। पढ़वाने के लिये शुक्रिया।
साधूवाद, इतनी सुंदर कविता पढ़वाने के लिये. :)
याचना के बन्धनों में प्यार तो बँधता नहीं है
साधना जब प्रीत की होती न दूरी शेष रहती
खोलती आराधना अवरोध की हर इक कड़ी को
ये नदी है दो ह्रदय के बीच दोनों ओर बहती
प्यार की इस दीप्ति से सहमत हुई हैं धड़कनें भी
प्रीत के बिन साज कोई और यह छेड़ा नहीं है.
सुन्दर गीत है.
इतनी सुंदर कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया.मन के साथ साथ बुद्धी को भी छू गयी यह कविता.धन्यवाद.
एक सुन्दर कविता को बाँटनें के लिये धन्यवाद ।
अचला जी को नमस्कार पहुँचाना ।
Post a Comment