Sunday, June 03, 2007

जुगनू

कहते हैं, भगवान जब इंसान को बना रहा था, उसने कुछ परीक्षायें ली, या कह लें कि कुछ 'टेस्ट' किये उस पर। उसने खुशी, ग़म आदि को हर प्राणी पर आज़माया। जब उसने पत्थर को शोक दिया, तो वो टूट गया। पेड़ को शोक दिया तो वो गिर गया मगर इंसान को शोक दिया तो वो दो दिन रोया और तीसरे दिन सह गया। भगवान ने तब शोक का भाग इंसान के हिस्से डाल दिया।

सच है, इंसान वो सब सह जाता है जो एक आम प्राणी न सह पाये। ज़िंदगी आगे चलने का नाम है। कब रुकी है वो? हम पिछले कल में बैठे भी तो नहीं रह सकते। आशायें टूट जाती हैं, मगर इंसान नये उम्मीद लिये चल पड़ता है, फिर किसी अनजाने मंज़िल की खोज में।

हरिवंश राय बच्चन की इस कविता में गूढ़ अर्थ छिपा है, मेरी एक और प्रिय कविता--

जुगनू

अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

उठी ऐसी घटा नभ में
छिपे सब चांद औ' तारे,
उठा तूफान वह नभ में
गए बुझ दीप भी सारे,
मगर इस रात में भी लौ लगाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

गगन में गर्व से उठउठ,
गगन में गर्व से घिरघिर,
गरज कहती घटाएँ हैं,
नहीं होगा उजाला फिर,
मगर चिर ज्योति में निष्ठा जमाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

तिमिर के राज का ऐसा
कठिन आतंक छाया है,
उठा जो शीश सकते थे
उन्होनें सिर झुकाया है,
मगर विद्रोह की ज्वाला जलाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

प्रलय का सब समां बांधे
प्रलय की रात है छाई,
विनाशक शक्तियों की इस
तिमिर के बीच बन आई,
मगर निर्माण में आशा दृढ़ाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

प्रभंजन, मेघ दामिनी ने
न क्या तोड़ा, न क्या फोड़ा,
धरा के और नभ के बीच
कुछ साबित नहीं छोड़ा,
मगर विश्वास को अपने बचाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

प्रलय की रात में सोचे
प्रणय की बात क्या कोई,
मगर पड़ प्रेम बंधन में
समझ किसने नहीं खोई,
किसी के पथ में पलकें बिछाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?

7 comments:

अनूप भार्गव said...

इंसान को भूलनें की जो शक्ति ईश्वर ने दी है, वह अमूल्य है । कई बार ज़िन्दगी में ऐसे क्षण आते हैं , लगता है अब वह आगे कैसे बढेगी लेकिन फ़िर समय के साथ वही बड़ी सी लगनें वाली बात मामूली लगने लगती है ।
Life must go on ....

स्नेह और शुभ कामनाओं के साथ

eSwami said...

:)

सुनीता शानू said...

मानोशी जी बहुत ही बेहतरीन कविता है..आज हम लाख कोशिश करके अपनी कविता में वो भाव नही ला सकते...बेहतरीन प्रस्तुति

Anonymous said...

मानोशी दी,
ये मेरी पसंदीदा कविताओ मे से एक है !

वैसे मै आजकल कनाडा मे हूं , मांट्रीयल मे :)

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

Thanks to everyone for your comments. Sorry to write in English. Ashish, please check your Wipro mailbox. I have sent you an email.

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छी लगी यह कविता पढ़ने में!

कुन्नू सिंह said...

मानशी दीदी
"जूगनु तो मेरा दुसरा नाम है।