आइये सुनें बेगम अख़्तर द्वारा गाई सुदर्शन फ़ाकि़र की ये मशहूर ग़ज़ल-
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वरना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
आप कहते हैं कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया
रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें
जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया
तुझसे मिल कर हमें रोना था बहुत रोना था
तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया
एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें फ़ाकिर
हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया
8 comments:
मानसी जी आपको काफी लम्बे अरसे बाद ब्लाग में मुलाकात हो रही है, आपके बाल मनोविज्ञान का एक पोस्ट मुझे अब भी याद आता है, आप नियमित लिखती रहें ........ ।
संजीव तिवारी
आरंभ
रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें
जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया
तुझसे मिल कर हमें रोना था बहुत रोना था
तंगी-ए-वक़्त-ए-मुलाक़ात ने रोने न दिया
बहुत ख़ूब...
बहुत अच्छी गजल के लिए धन्यवाद स्वीकारें -वैसे रोने के ऊपर पुराने शायर कुछ ज़्यादा ही लिखा करते थे -वे क्यों रोते थे =फिल्मी गाने भी बहुत लिखे जाते थे -रोते रोते गुजर गई रात इत्यादि इत्यादि -फिर कोई आए और ज्यादा रोना देख कर कहने लगे "" बात रोने की लगे फिर भी हंसा जाता है , यूँ भी हालात से सम्झोंता किया जाता है =इससे भी पहले बहुत पहले कहा गया था ""चार दिन की जिंदगी है कोफ्त से क्या फायदा ,खा डबलरोटी ,किलर्की कार खुशी से फूल जा ""बहुत रो लिए अब तो रोने से जी घबराता है -पहले छुप कर रोते थे बरसात में निकल जाते थे ताकि कोई हमारे आंसू न देख सके और सोचे की बेचारा पानी में भीग रहा है
मानसी जी बेगम अख्तर की गायी गजल सुन कर मजा आगया । बहुत शुकून मिला ।गुलाम अली जी भी कोई गजल जरूर पोस्ट करिये । धन्यवाद और तहे दिल से शुक्रिया ।
गजल सुन कर मजा आया, धन्यवाद !
आप कहते हैं कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया
रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें
जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया
कमाल की कलम थी फाकिर साहब की
अच्छी प्रस्तुति
आपको बधाई
आप कहते हैं कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया
बहुत खूब. मेरी पसंदीदा ... वाह !
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