लिखना एक कला ही नहीं बल्कि ख़ुद की भावनाओं को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम भी है। मेरा बच्चा कहता तो बहुत अच्छा है, मगर लिखना नहीं चाहता, उसे लिखना नहीं आता। ये आम शिकायत होती है मां-बाप और शिक्षकों की। बच्चे में लिखने की आदत डालना बहुत ज़रूरी है। चाहे अंग्रेज़ी, हिन्दी या कोई और भाषा हो। आज एक प्रोफ़ेशनल डेवलेप्मेंटल मीटिंग हुई स्कूल में। एक किताब है, ’नोट्बुक्स नोहाउ’ (notebooks know how), एमी बक्नर की लिखी हुई। उसी किताब पर बातचीत हुई और हमने बच्चों के लेखन शैली, आदतें आदि में सुधार के विषय में काफ़ी कुछ सीखा, सिखाया। ऐसी मीटिंग्स, इस किताब के ऊपर सारे साल महीने में एक- दो बार चलने की उम्मीद है और जैसे-जैसे मेरी जानकारी और इस विषय पर और मेरा अनुभव बढ़ेगा, मैं उसे यहाँ और बाँटती जाऊँगी। ये तरीक़े, घर पर मां-बाप या स्कूल में शिक्षक भी इस्तेमाल कर सकते हैं। आगे जो भी लिख रही हूँ, वो अपने अनुभव के आधार पर और इस किताब से लेकर-
बच्चे में लिखने की आदत डालने के लिये, उसकी सृजनात्मकता बढ़ाने के लिये ज़रूरी है कि बच्चा अपनी मर्ज़ी से, और बहुत ज़रूरी है कि अपनी ख़ुशी से लिखे। सबसे पहले तो बच्चे को एक नोट्बुक उसकी मर्ज़ी का पसंद करने दीजिये, उसे ही दुकान से ख़रीदने दीजिये, जैसा वो चाहे। सुंदर, स्पाइरल, छोटी, मोटी, पतली, जैसी भी। उसकी पसंद की। ज़रूरी है कि वो बच्चा उस किताब को अपना माने। उसे अपनी पुस्तिका को सजाने दीजिये, शायद आप को अच्छा न लगे उसका बेतरतीब सजाना, मगर वो उसकी पुस्तिका है। एक बात ध्यान रखने की है, लिखता कोई तभी अच्छा है जब वो पढ़ता है। इसलिये साथ ही बात आती है कि आप रोज़ बच्चे के साथ बैठ कर एक किताब पढ़ें। बच्चा अगर थोड़ा बड़ा है तो अपने आप पढ़ सकता है और आप उस के साथ उस किताब में उसे क्या अच्छा लग रहा है आदि की छोटी बातचीत कर सकते हैं।
लिखना कैसे शुरु करें- बच्चे के साथ यूँ ही बातचीत शुरु कीजिये। आप कहीं घूमने गये होंगे, बच्चा किसी फ़ील्ड ट्रिप पर गया हो, या उसका कोई पसंदीदा खिलौना। और बच्चा खु़द खुश हो कर उस बारे में बात करने लगे, उसके पास उस बातचीत से संबंधित कोई अपनी कहानी हो कहने के लिये, तो बस उसे कहिये कि क्यों न वो उसे अपनी पुस्तिका में लिख डाले और लिख कर आपको दिखाये। ध्यान रहे कि आप उसको अभी सिर्फ़ लिखने का प्रोत्साहन दे रहे हैं, न कि उसके लिखने को जाँच रहे हैं। उसके काम की तारीफ़ कीजिये मगर उसके काम को सुधारिये नहीं। अगर सुधारना ही है तो उसके काम के ऊपर कभी भी कुछ मत लिखिये, बल्कि एक अलग पृष्ठ पर उसे बताइये कि वो क्या करता तो बेहतर होता, और खुद उससे पूछिये कि वो क्या लिखता तो उसे बेहतर लगता। इस तरह दो बातें उसकी पुस्तिका के पीछे के पृष्ठ पर लिख दें और कहें कि अगली बार जब लिखे वो तो इन दो बातों का ध्यान रखे। कक्षा में शिक्षक, बच्चों से, उनका नाम कैसे पड़ा या उनके नाम में क्या ख़ास बात है, कि ऊपर थोड़ी सी चर्चा कर के, जैसे ही सब अपनी अपनी कहानी बताने को तैयार हो जायें, उन्हें लिखने के लिये कह सकता है।
एक और कारगर तरीक़ा- बच्चों/बच्चे से कहिये कि जो उन्हें सबसे अच्छा लगता है, सबसे प्रिय उसकी एक लिस्ट बनाये। और बस आपका काम आसान। जैसे ही लिस्ट बन गई, उसे कहिये कि अब इस लिस्ट में से किसी भी विषय पर जो भी उसे सबसे अच्छा लगता है, वो लिख सकता है। अगर चाहें तो पहले इस विषय के बारे में थोड़ी बातचीत कर लें, जिस से बच्चा उत्साहित हो, फिर अपनी कहानी बयान करने लगे, और तब उसे लिखने कहें। इस तरह अगर बच्चा रोज़ एक पृष्ठ (या जितना भी) लिखता है तो उसे लिखने की आदत पड़ेगी। भारत के स्कूल में essay लिखने की प्रथा है जहाँ एक विषय पहले से ही दे दिया जाता है। इस तरह बताये गये लिखने की आदत से बच्चे को ऐसे पहले से चुने हुये विषयों पर भी लिखने के लिये कोई essay याद नहीं करना पड़ेगा, बल्कि वो ख़ुद ही लिख सकेगा।
आज इतना ही, आगे फिर लिखूँगी इस विषय पर...
6 comments:
bahut badhiya abhivyakti . dhanyawad.
बच्चे को लिखना सिखाने के लिए उनके माता पिता को दिए गए टिप्स के लिए धन्यवाद। बड़े काम की बातें लिखी आपने।
बहुत सही लिखा आपने । कर्तव्य का पालन करें और ध्यान दें ।
शुक्रिया !
आप की क्लास अच्छी लगी। बच्चों के बच्चों पर अपनाई जा सकती हैं।
ये तो बड़ी अच्छी बात बता गयीं!
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