सफ़ेद चादर बिछी दिखाई देती है घास पर खिड़की से। कई आदतें हैं... बुरी, अच्छी, और कुछ सामान्य। रोज़ उठ कर उनींदी आँखों से खिड़की के बाहर देखना, सुबह...। आज नयापन है मौसम में। पहली बर्फ़, पहली ठंड मौसम की। फिर, आदत ही है, चुपचाप उतर कर जाना नीचे, दबे पाँव...चाय की गर्म भाप...आह! भाप को भी तो आदत है, इन उनींदी आँखों में चुपचाप बस जाने की... बाज़ी जीत जाने की आदत क़ातिलाना होती है। पहले शाल में लिपट कर बैठने की आदत थी, अब नहीं रही, हीटेड घर, शुष्क सा लगता है, उस ऊनी शाल की गर्माहट याद आती है।
प्लेग्राऊंड में शोर है। मिसेज़ चटर्जी, वो मुझसे मेरा स्नैक माँग रहा है, दे दूँ? मिसेज़ चटर्जी, आज मैं देर से उठा, इसलिये देर से स्कूल पहुँचा, कल दीवाली पर मैंने खूब पटाखे चलाये। बातों का शोर... हरी घास पर से बर्फ़ की हल्की परत उठा कर घास को साँस लेने देती हूँ। घंटी की तेज़ आवाज़ से तंद्रा भंग होती है। ...और दो घंटे बाद घर।
कम्प्यूटर की खट-खट।
"दीदी क्या कर रही हो?"
" तू कैसा है अरनव? दिवाली पर क्या किया।"
"मिठाई खाई। यूथ पार्लियामेंट याद है दी्दी? वो पुरी में पुरोहित सर का हम सबको डाँटना?" "अरे! हाँ रे...सच पुराने दिन..."
कम्फ़र्टर का कोना सिर के नीचे रख कर सोना...कंफ़र्ट और फिर वही आदत। ठंड की दोपहर की नींद-न आदत नहीं, पर पसंद है। उठ कर शाम की चाय के साथ दो, दो से ज़्यादा नहीं, कुकीज़, वो भी चाकलेट चिप ही...
चाय के भाप में, किचन में मेरी कढ़ाई की टन-टन में, प्ले ग्राउंड की घंटी में, कम्प्यूटर की खट-खट में और कम्फ़र्टर के कम्फ़र्ट में तुम, तुम्हारी आदत? तुम कब आदत बन चुके मेरी... चुपके से, बिना बताये? मेरी हज़ार बातों को तुम्हारी चुप्पी की..., और मेरी लंबी सी एक बात को तुम्हारे एक छोटे से ’हाँ’ की...कंफ़र्ट..आदत। सोचती हूँ ये जो साया बन कर घूमते हो मेरे साथ, तुम भी तो बँधे होगे? एक दिन के लिये तुम्हें बंधन मुक्त कर दूँ तो?
ये सुंदर गाना सुनिये-
7 comments:
इन पंिक्तयों में आपने बहुत सुंदर भाव को व्यक्त िकया है । मैने भी अपने ब्लाग पर एक किवता िलखी है । समय हो तो आप पढें आैर प्रितिकर्या भी दंें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com.
nice post....geet bhee sundar.
बहुत सुँदर चित्रण किया
रोज के जीवन की छवि
और मधुर गीत :)
Very Good Work!!
सुन्दर। बेहतरीन! शानदार! सबेरे की चाय पीते हुये ये गाना सुना जा रहा है। चाय के कप से भाप उड़ रही है। श्रीमतीजी कह रही हैं- ये गाना लगा रहने देना। लिखना भी गजब का है।:)
तुम कब आदत बन चुके मेरी... चुपके से, बिना बताये? मेरी हज़ार बातों को तुम्हारी चुप्पी की..., और मेरी लंबी सी एक बात को तुम्हारे एक छोटे से ’हाँ’ की...:)...pasand ki cheez sunvaney ka thx aapko
sajeev chitran hai.
aur bahut sundar gana bhi.
aise sundar gane ab nahin aate .
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