जो तेरी आँखों मे है वो
मेरी दुनिया रही तो क्या
'गर छ्लक जाये तेरी आँखें कभी
और बह जाये दुनिया मेरी, तो क्या
छोटी सी एक कहानी जो रोये
किसी कोने में सिमट कर
और उधडे हुये ख्वाबों के संग
उड़ता हो कोई चीथडा़ भी तो क्या?
ख़्वाब ही तो हैं बिखर जाये भी तो क्या?
एक ज़िन्दगी यूं ही गुज़र जाये भी तो क्या...
4 comments:
"ख़्वाब ही तो हैं बिखर जाये भी तो क्या?"
...इसका दर्द तो केवल वाही समझता है जिसने कभी ख्वाब देखे हो और दूसरों की खुशियाँ जोड़ने के लिए अपने ख्वाब तोड़ दिए हो.
उड़ता हो कोई चीथडा़ भी तो क्या?
ख़्वाब ही तो हैं बिखर जाये भी तो क्या?
एक ज़िन्दगी यूं ही गुज़र जाये भी तो क्या...
bahut khoob
फिर तेरा दर्द सीने मे छुपाना चाहता हूँ
कि इन वीरान आँखो मे कोई मौसम खिलाना चाहता हूँ …आपको पढ़कर अपनी बात याद आ गयी
behad bhaavpoorn
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