घुटनों से भर पेट
फटे आसमां से ढक बदन
पैबंद लगी ज़मीं पर
सोता हूं मैं आराम से....
माथे पर की ओस हटा
गरजते बादलों को डरा
चाँद को भी मुँह चिढा
सोता हूँ मैं आराम से...
दीवारों से लड़ झगड़
कोहनी का तकिया लगा
ऊंची शाख़ पर सपने टांग
सोता हूँ मैं आराम से...
तारों से आँखें लड़ा
अपने को गले लगा
बाहों की गर्मी में
सोता हूँ मैं आराम से...
1 comment:
बड़ी ऐश हो रही है!
Post a Comment