अचला जी यहीं रहती हैं, टोरांटो में, महादेवी वर्मा जी से विरासत में ही कविता मिली है उन्हें। महादेवी वर्मा जी की भांजी हैं अचला जी। एक अच्छी कवियित्री ही नहीं बल्कि एक बहुत बहुत सुलझी हुई इंसान, जिनके साथ घंटों बात कर के भी मेरा मन नहीं भरता। बहुत अच्छी टीचर, जिनके लिखे कुछ संस्मरण आँखों में आँसू ला देते हैं।
उन की एक कविता मुझे बहुत ही प्रिय है, जो मैं पहले भी पोस्ट कर चुकी हूँ, आज फिर कर रही हूँ।
एक बार मैंने उनसे पूछा, "ये कविता मुझे इतनी क्यों पसंद आती है अचला जी, मेरे ख़याल से ये मेरी प्रिय कविताओं की लिस्ट में सर्वोपरि है।"
उन्होंने समझाया, " शायद इसलिये मानोशी, क्योंकि ये कविता हमारे व्यक्तित्व के क़रीब है। कोई भी कविता तुम देखना हमें तब बहुत अच्छी लगती है जब वो हमारे जैसी हों. हमारे भावनाओं का उद्गार हो।" सच है शायद...
पेश है फिर से एक बार, इस बार आवाज़ में-
मेरा प्यार
टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे,
हो किसी का प्यार लेकिन , प्यार वो मेरा नहीं है।
रख नहीं पाया मान निज जो, प्यार वो कैसे करेगा?
हीनता से ग्रस्त है जो, दीनता ही दे सकेगा।
द्वार पर तेरे खड़ा हूँ, स्नेह का लेकर निमंत्रण,
एक चुटकी भीख को यह दीन का फेरा नहीं है।
हो किसी का प्यार लेकिन, प्यार वो मेरा नहीं है।
है विदित, होती रही है प्यार की उद्दाम धारा,
बँध सके जो बंधनों से और ना निज कूल से
राह में अवरोध कोई सर उठाये,
यह बहा दे, तोड़ दे, ढाये उखाड़े मूल से
है अगर यह प्यार तो आश्वस्त हूँ मैं
इस प्रभंजन ने प्रबल, यह मन मेरा घेरा नहीं है।
हो किसी का प्यार लेकिन प्यार वो मेरा नहीं है।
प्यार है ले बहे जो, मन्द मन्धर गति निरंतर,
जी उठे स्पर्श पाकर हाँफ़ती मरुभूमि बंजर।
मान रखता, मान देता, मधुर मंगल रूप कोमल,
प्यार का जो स्वप्न मेरा क्या वही तेरा नहीं है?
टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे,
हो किसी का प्यार लेकिन , प्यार वो मेरा नहीं है।
6 comments:
सुंदर अभिव्यक्ती!अचलाजी को इस रचना के लिये और आपको इसे यहां प्रस्तुत करने के लिये बधाई!
मान रखता, मान देता,
मधुर मंगल रूप कोमल,
अचला जी मेँ झलक है महादेवी जी की ! उन्हेँ बहुत स्नेह व बधाई और तुन्हेँ भी इतना सुँदर स्वर दिया है !
बहुत सुन्दर पसंद है! बधाई!
अचला जी से एक बार मुलाकात है. बहुत बढिया रचना है. आभार पेश करने का.
पढने से अधिक आनंद सुनने में आया।
बहुत बढिया रचना है.|बधाई।
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