Thursday, November 06, 2008

सोता हूँ आराम से


घुटनों से भर पेट

फटे आसमां से ढक बदन

पैबंद लगी ज़मीं पर

सोता हूं मैं आराम से....



माथे पर की ओस हटा

गरजते बादलों को डरा

चाँद को भी मुँह चिढा

सोता हूँ मैं आराम से...



दीवारों से लड़ झगड़

कोहनी का तकिया लगा

ऊंची शाख़ पर सपने टांग

सोता हूँ मैं आराम से...



तारों से आँखें लड़ा

अपने को गले लगा

बाहों की गर्मी में

सोता हूँ मैं आराम से...

1 comment:

Anonymous said...

बड़ी ऐश हो रही है!