उस समय हम इस देश में नये नये आये थे। शुरुआती महीनों मे एक नई जगह बसने की स्ट्रगल होती है, उसी में बिज़ी रहे थे हम दोनों। बहुत दिन नहीं हो पाये थे, कोई छ: महीने बाद ही मैंने अपना घुटना तोड़ लिया था, बर्फ़ पर फ़िसल कर। पहली बार बर्फ़ देखने की चाह, अस्पताल से पूरी हुई थी, अभी भी याद है...सर्जरी के बाद, बिस्तर से बाहर मैं खिड़की से बर्फ़ देख रही थी...ओह! क्या दिन थे..सच।
तो ख़ैर, उन्हीं दिनों घर पर बैठे बैठे, दिन में कुछ करने को ख़ास होता नहीं था, जब मैंने कम्प्यूटर को अपना साथी बनाया था, हिन्दी तब यूनिकोड में उपलब्ध नहीं था। तो अंग्रेज़ी में कवितायें और लेख लिखे, ज्योतिष की चर्चा की आदि। फिर शुषा फ़ांट से परिचय हुआ। २००४ सितंबर में कुछ अच्छे दोस्त बने इंटर्नेट के ही थ्रू। पूर्णिमा दी (पूर्णिमा वर्मन) से मुलाक़ात होने के बाद, उनके प्रोत्साहन ने मुझे लिखने को फिर मजबूर किया, हिन्दी में। मैं तो भूल ही चुकी थी कि कभी मैं लिखती थी। फिर रवि रतलामी, अनूप शुक्ल आदि के कहने पर ब्लाग शुरु किया। उस वक्त ब्लाग सिर्फ़ चंद लोग लिखते थे। देबाशीष, जीतू, अनूप शुक्ल, ई-स्वामी, रमन कौल, प्रत्यक्षा, अनूप भार्गव आदि। ये सब ब्लागिंग के जगत के दिग्गज हुआ करते थे। प्रोग्रामिंग आदि के महारथी। इनका हिन्दी ब्लागिंग को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ा हाथ है। उस वक़्त छोटी सी ब्लागिंग की दुनिया, एक परिवार जैसा हो गया था। सभी से बातचीत होती थी, और सब अपने ही लगते थे। अच्छे लोग, पारिवारिक संबंध। सुनील दीपक के पोस्ट्स भी बहुत अच्छे होते थे ( अभी भी)। आशीष श्रीवास्तव ’खाली-पीली’ नामक ब्लाग चलाते थे। बहुत मज़ेदार पोस्ट्स होते थे उनके...तब कुँवारे थे... और तो और, आशीष की शादी भी रवि रतलामी के ही भांजी से हुई, ब्लागिंग के ज़रिये ही परिचय...अमेज़िंग...शादी के बाद क्या हुआ आशीष? ब्लागिंग बंद?
धीरे-धीरे अब ये परिवार बढ़ कर इतना बड़ा हो गया है कि विश्व समाने लगा है। ये बहुत खु़शी की बात है। हिन्दी का प्रचार बढ़ रहा है। विकीपीडिया पर भी हिन्दी के लेख बहुत बढ़े हैं।
आज ब्लाग पर अपनी प्रविष्टियाँ देख रही थी। ध्यान दिया कि पिछले साल मैंने बहुत कम लिखा...और २००५-२००६ में काफ़ी। पिछले दो-तीन महीने से फिर ख़ूब ज़्यादा, रोज़ ही प्राय:। तो समझ आया कि लिखना या कोई भी अपना रुचिकर काम तभी ज़्यादा करता है इंसान, जब वक़्त हो। २००५-२००६ में सारे साल घर पर थी, वैंक्यूवर में। घर सजाने ( औरतों का सबसे प्रिय काम) और कम्प्यूटर पर कुछ दोस्तों से बकबक करने के अलावा ख़ास कुछ नहीं किया। घर पर बोर होती रही और कोसती रही यहाँ के सिस्टम को जो कि हर प्रदेश में फिर से क्वालिफ़िकेशन लेने की बात करता है। मैं आन्टेरिओ में सर्टिफ़ाइड थी, ब्रिटिश कोलंबिया में नहीं। सो स्कूल में नौकरी नहीं मिल सकती थी। अब पछताती हूँ, क्यों उस वक़्त पूरे एक साल की छुट्टी को पूरी तरह एन्जाय नहीं किया, अब काश वो दिन वापस आयें...ख़ैर...उस वक़्त भी काफ़ी ब्लागिंग की। और ख़ूब जम कर ज्योतिष...नये नये सिद्धांत सीखे।
२००६ के आखिरी में टोरांटो स्कूल में नौकरी ले कर वापस आई। आकर पिछले साल ख़ुद को जमाने के लिये काफ़ी कोर्सेस करने पड़े...५ कोर्स किये एक साल में...नौकरी, कोर्स, घर-परिवार के बीच जो थोड़ा सा वक़्त मिलता, उसमें कभी-कभार लिखती रही, वो भी अनूप शुक्ल से डाँट खा-खा कर। फिर इस साल गर्मी की छुट्टियों में ख़ूब कविता-शविता हुई। इस साल मैंने पार्ट टाइम नौकरी लेने का फ़ैसला किया। पार्ट टाइम की वजह से अब स्कूल खुलने पर भी, घर जल्दी आना होता है और लिखना भी ख़ूब। ब्लागवाणी से इतने दूर रह कर ब्लाग पढ़ती ही नहीं थी, पर अब देखा कि लोग संगीत का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं, Divshare आदि का पता चला, तो संगीत बाँटने की भी इच्छा हुई। इस तरह पोस्टिंग्स बढ़ीं। ये भी समझ आया कि सीधा ताल्लुक़ है ब्लागिंग का फ़ुरसत से...फ़ुरसतिया जी, कितनी फ़ुरसत है आपको अब समझ आया...:-) फिर एक कोर्स शुरु करना है कुछ दिनों में...फिर लिखना कम हो जाये शायद...पर हर चीज़ का वक़्त होता है और पीछे मुड़ कर देखो तो महसूस होता है, जो भी होता है हमेशा अच्छे के लिये ही होता है। लिखना एक अभिव्यक्ति है, एक्स्प्रेशन है और कई बार ज़रूरी भी, पर नशा किसी भी चीज़ का अच्छा नहीं होता। सामंजस्य ज़रूरी होता है हर चीज़ के लिये...हाँ भई, ब्लागिंग का भी तो नशा ही होता है...क्या आप सब को नहीं लगता?
13 comments:
aap achcha likhti hain aur sochti bhi hain isliye likhen aur dher saa likhen badhai
Manoshi
आपका ब्लोगिग सफरनामा पढकर अच्छा लगा। पहली बार आपके ब्लोग पर मेरा आना हुआ। क्यो कि हम तो इस सफर मे नये नये है। पुराने लोगो के बारे मे अधिक जानकारी नही है। २००५ मे आपने मानसी, २००६ संगीत, २००८ परी कथा, २००८ को ही happiness is you नाम से ब्लोग लिख रही है। मेने लगभग चारो ब्लोग का आज अधयन किया, आपने काफी लिखा है, और अच्छा लिखा है। इतना लिख दिया कि एक अच्छी-खासी पुस्तक बन सकती है। आपके अनुभव नये ब्लोगरो को भी मिले, आप नया कोर्स जरुर करे पर आपकी इस रुचि को भी समय दे।
शायद निचे लिखी पक्त्तियॉ आपकि प्रथम पोस्ट के अनमोल शब्द है जो आज के प्रसग पर प्रयोग कर रहा हु । यह शब्द आपको आपके ब्लोगिग सफर कि यादे ताजा कराये। आपके मगलमय जिवन के लिये हार्दिक शुभकामना।
अकेला आसमान,
उजला आसमान,
जलता आसमान,
उलझा आसमान,
हमसफ़र आसमान,
mahaveer_b@yahoo.com
हे प्रभु यह तेरापन्थ
अच्छा संस्मरण लिखा है। जब ब्लागिंग शुरू की थी तब बहुत कम लोग थे। एक-दूसरे की सब पोस्ट पढ़ लेते थे। खिंचाई-विंचाई भी काफ़ी हो लेती थी। अब दिन-प्रतिदिन ब्लाग जुड़ते जा रहे हैं। नित नये विषय पर लिखने वाले धुरंधर लिक्खाड़ आते जा रहे हैं और ब्लागिंग का दायरा बढ़ रहा है।
ब्लागिंग की शुरुआत के बाद होता है कि यह नशा सा बन जाता है। काफ़ी समय इसमें लगता है। फ़िर यह भी होता है कि तीन चार साल होते-होते यह एहसास होता है कि और भी गम हैं दुनिया में ब्लागिंग के सिवा!
रवि रतलामी को छोड़कर लगभग सभी का ब्लाग लिखना कम हो गया है। कुछ का तो बंद ही हो गया।
और जो लिखने के लिये डांटने और हड़काने वाली बात है वह सभी जानते हैं कि मानसी हड़काने का काम अपने सिवा किसी और के जुम्मे नहीं छोड़ती। दूसरे केवल अनुरोध कर सकते हैं। है कि नहीं।
फ़ुरसत जब मिले तो ब्लाग लिखते रहना चाहिये।
अस्वीकरण :- हम यहां बता देते है कि आशीष आजकल लिखते नही है इसका कारण हम नही है! शादी के पहले कन्या पुराण लिखते थे , अब लिखने को बचा क्या है ?
घर मे दाना पानी जो बंद नही हो जायेगा।
ब्लॉग्गिंग की सीनियर को जूनियर का प्रणाम!!!!
कृपया लगे रहें .............................................
और हम लोगों के मार्गदर्शक बनते रहें!!!!!!!
यह पोस्ट फ़िलहाल अपना हाथ खींचने की भूमिका तो नहीं ?
नाय.. ऎई रोकोम कोरबे ना मानोषी !
पहले तो मेरी गज़लों की इतनी शानदार तारिफ़ के लिये करोड़ो शुक्रिया....अभी बस सीख रहा हूं मैम
और इस ब्लौग की पुरातन-कथा ने मन मोह लिया
आज पहला दिन था तो आपके पुराने वाले ढ़ेरों पोस्ट पढ़ गया....कोई फैन-लिस्ट मेंटेन तो नहीं करती आप?मुझे शामिल कर लें
आपके ब्लॉग के माध्यम से ब्लॉग के आरंभिक माहौल से परिचित हुआ। आभार।
बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें
जो लिख नहीं रहे वो पढ़ भी नहीं ऐसी बात तो नहीं है :) अच्छा लगा, लिखते रहिये!
अरे! देबाशीष दा, आपका उल्लेख करना भूल गई, आप तो ब्लागिंग में हमारे सीनियर रहे हैं। सारी...लेख में संशोधन किया है। देख लें।
बहुत अच्छा लगा। ब्लॉग के पाठकों को शायद ही पता हो कि मानसी, बहुमुखी प्रतिभा वाली ब्लॉगर है। जितना अच्छा ये लिखती है, उतना ही अच्छा ये गाती भी है। मानसी जी, अगर थोड़ा समय मिले तो कुछ संगीत पर भी लिख दो, अपनी सुरीली आवाज मे आडियो भी डाल दो तो सोने पर सुहागा।
ये बात सही है कि आजकल पुराने ब्लॉगर्स का लिखना कम हो गया है, उसका कारण, ब्लॉगिंग से विरक्ति नही, बल्कि दूसरे कामों जैसे नून तेल लकड़ी अथवा ऑफिस के कार्यो मे व्यस्त होना शामिल है। लेकिन ब्लॉगिंग हमारा पहला प्यार है, इसलिए इसको तो भुलाया नही जा सकता। आज नही तो कल, पुराने ब्लॉगर समय निकालकर ब्लॉगिंग पुन: शुरु करेंगे, इन्ही शुभकामनाओं के साथ।
मानोसी, मैंने इसे पढ़ा था उस समय, मैं इंडिया जा रहा था इसलिये कमेंट नही कर पाया था क्योंकि जिन लोगों का आपने जिक्र किया है उस वक्त हम इतने ही लोग हुआ करते थे। लगता है आप हमारा नाम भी भूल गयी लेकिन हम आपको नही भूले थे, जब दो साल पहले ये लेख लिख मारा था -
http://www.readers-cafe.net/nc/2007/02/24/2-years-of-hindi-blogging/
Post a Comment