चलो खु़द को ज़माने से मिला दें अब
नया ये काम कर के ही दिखा दें अब
नया ये काम कर के ही दिखा दें अब
बड़ा अनजान लगता है शहर मेरा
बड़ी ऊँची है दीवारें, गिरा दें अब
बड़ी ऊँची है दीवारें, गिरा दें अब
हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब
तुम्हें है चैन ना मुझको क़रार आये
रुका सैलाब इन आंखों से बहा दें अब
रुका सैलाब इन आंखों से बहा दें अब
नुमाइश की हमें आदत नहीं पर हाँ
सिहर जाओ जो ज़ख्म अपने दिखा दें अब
सिहर जाओ जो ज़ख्म अपने दिखा दें अब
बड़ी धुँधली सी बातें कह रही आँखें
चलो झीना ये पर्दा भी हटा दें अब
चलो झीना ये पर्दा भी हटा दें अब
उन्हें अपने जो ग़म से हो ज़रा फ़ुर्सत
तो 'दोस्त' अपना भी दर्द उनको सुना दें अब
तो 'दोस्त' अपना भी दर्द उनको सुना दें अब
.
(बहरे हज़ज़ मुसद्दस सालिम)
मुफ़ाईलुन x३
ग़ज़ल पर इस बहर की अच्छी जानकारी के लिये- सुबीर जी के ब्लाग यहाँ जायें
18 comments:
bahut khoobsoorat blog !
bahut khoobsoorat ghazal !
bahut khoobsoorat badhaai !
हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब
बहुत अच्छी कहन है मानसी जी ढेरों बधाई
बहुत उम्दा गज़ल लिखी है।बधाई ।
हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब्
वाह...वाह...!!
नुमाइश की हमें आदत नहीं पर हाँ
सिहर जाओ जो ज़ख्म अपने दिखा दें अब
बहुत खूब....!!
क्या बात है मानसी जी ....लाजवाब कर दिया आपने तो ....!!
हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब्
वाह...वाह...!!
नुमाइश की हमें आदत नहीं पर हाँ
सिहर जाओ जो ज़ख्म अपने दिखा दें अब
बहुत खूब....!!
क्या बात है मानसी जी ....लाजवाब कर दिया आपने तो ....!!
bahut sunder
बड़ी धुँधली सी बातें कह रही आँखें
चलो झीना ये पर्दा भी हटा दें अब
आप ने जो लिखा उसका भाव मुझे बहुत अच्छा लगा
वीनस केसरी
हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब
sunder rachna hai...
नुमाइश की हमें आदत नहीं पर हाँ
सिहर जाओ जो ज़ख्म अपने दिखा दें अब
बड़ी धुँधली सी बातें कह रही आँखें
चलो झीना ये पर्दा भी हटा दें अब
लाजवाब ग़ज़ल है.......... ये दोनो शेर बहुत खूबसूरत हैं
... उम्दा गजल, बेहद खूबसूरत, प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!!!
हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब
बहुत ऊंचा जीवन दर्शन छिपा है इन पंक्तियों में ...वैस तो पूरी गजल ही बहुत बढिया है .
हेमंत कुमार
बड़ा अनजान लगता है शहर मेरा
बड़ी ऊँची है दीवारें, गिरा दें अब... brilliant...in fact the whole composition is superb...feelings and the choice of words are really mature... technically I think it isnt flawless,but mujhe khud itni samajh nai iski...
www.pyasasajal.blogspot.com
bahut sundar madam ji
is gazal ko padhkar dil ek alag se ahsaas me chala gaya ..
behatreen lekhan . yun hi likhte rahe ...
badhai ...
dhanywad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
चलो खु़द को ज़माने से मिला दें अब
नया ये काम कर के ही दिखा दें अब
बड़ा अनजान लगता है शहर मेरा
बड़ी ऊँची है दीवारें, गिरा दें अब
bahut hi sundar.
चलो खु़द को ज़माने से मिला दें अब
नया ये काम कर के ही दिखा दें अब
बड़ा अनजान लगता है शहर मेरा
बड़ी ऊँची है दीवारें, गिरा दें अब
bahut hi sundar.
behad prabhaawshali rachana our ek ek panktiyan anmol ban padi hai.....bahut khub ......aise hi likhate rahe
kabile tarif gazal .....atisundar bhaw se guthe sundar shabd khub ba khud khoobsoorat ho gaye hai
विलंब से आ रहा हूँ...मन साथ नहीं था कुछ भी करने के लिये।
इस लाजवाब ग़ज़ल के लिये बधाई मानोशी
"सिहर जाओ जो जख्म अपने दिखा दें हम" इस मिस्रे पे सब निछावर..सब कुछ।
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