Wednesday, June 10, 2009

ग़ज़ल- बड़ी ऊँची हैं दीवारें


चलो खु़द को ज़माने से मिला दें अब
नया ये काम कर के ही दिखा दें अब

बड़ा अनजान लगता है शहर मेरा
बड़ी ऊँची है दीवारें, गिरा दें अब

हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब

तुम्हें है चैन ना मुझको क़रार आये
रुका सैलाब इन आंखों से बहा दें अब

नुमाइश की हमें आदत नहीं पर हाँ
सिहर जाओ जो ज़ख्म अपने दिखा दें अब

बड़ी धुँधली सी बातें कह रही आँखें
चलो झीना ये पर्दा भी हटा दें अब

उन्हें अपने जो ग़म से हो ज़रा फ़ुर्सत
तो 'दोस्त' अपना भी दर्द उनको सुना दें अब
.
(बहरे हज़ज़ मुसद्दस सालिम)
मुफ़ाईलुन x३
ग़ज़ल पर इस बहर की अच्छी जानकारी के लिये- सुबीर जी के ब्लाग यहाँ जायें

18 comments:

Unknown said...

bahut khoobsoorat blog !
bahut khoobsoorat ghazal !
bahut khoobsoorat badhaai !

संजीव गौतम said...

हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब

बहुत अच्छी कहन है मानसी जी ढेरों बधाई

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत उम्दा गज़ल लिखी है।बधाई ।

हरकीरत ' हीर' said...

हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब्

वाह...वाह...!!

नुमाइश की हमें आदत नहीं पर हाँ
सिहर जाओ जो ज़ख्म अपने दिखा दें अब

बहुत खूब....!!

क्या बात है मानसी जी ....लाजवाब कर दिया आपने तो ....!!

हरकीरत ' हीर' said...

हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब्

वाह...वाह...!!

नुमाइश की हमें आदत नहीं पर हाँ
सिहर जाओ जो ज़ख्म अपने दिखा दें अब

बहुत खूब....!!

क्या बात है मानसी जी ....लाजवाब कर दिया आपने तो ....!!

mehek said...

bahut sunder

वीनस केसरी said...

बड़ी धुँधली सी बातें कह रही आँखें
चलो झीना ये पर्दा भी हटा दें अब

आप ने जो लिखा उसका भाव मुझे बहुत अच्छा लगा

वीनस केसरी

Rajat Narula said...

हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब

sunder rachna hai...

दिगम्बर नासवा said...

नुमाइश की हमें आदत नहीं पर हाँ
सिहर जाओ जो ज़ख्म अपने दिखा दें अब

बड़ी धुँधली सी बातें कह रही आँखें
चलो झीना ये पर्दा भी हटा दें अब

लाजवाब ग़ज़ल है.......... ये दोनो शेर बहुत खूबसूरत हैं

कडुवासच said...

... उम्दा गजल, बेहद खूबसूरत, प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!!!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

हो दिल में आग पर लब पर तबस्सुम हो
उन्हें मिलने का ये फ़न भी सिखा दें अब

बहुत ऊंचा जीवन दर्शन छिपा है इन पंक्तियों में ...वैस तो पूरी गजल ही बहुत बढिया है .
हेमंत कुमार

Sajal Ehsaas said...

बड़ा अनजान लगता है शहर मेरा
बड़ी ऊँची है दीवारें, गिरा दें अब... brilliant...in fact the whole composition is superb...feelings and the choice of words are really mature... technically I think it isnt flawless,but mujhe khud itni samajh nai iski...

www.pyasasajal.blogspot.com

vijay kumar sappatti said...

bahut sundar madam ji

is gazal ko padhkar dil ek alag se ahsaas me chala gaya ..

behatreen lekhan . yun hi likhte rahe ...

badhai ...

dhanywad.
vijay

pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html

Prem Farukhabadi said...

चलो खु़द को ज़माने से मिला दें अब
नया ये काम कर के ही दिखा दें अब


बड़ा अनजान लगता है शहर मेरा
बड़ी ऊँची है दीवारें, गिरा दें अब

bahut hi sundar.

Prem Farukhabadi said...

चलो खु़द को ज़माने से मिला दें अब
नया ये काम कर के ही दिखा दें अब


बड़ा अनजान लगता है शहर मेरा
बड़ी ऊँची है दीवारें, गिरा दें अब

bahut hi sundar.

ओम आर्य said...

behad prabhaawshali rachana our ek ek panktiyan anmol ban padi hai.....bahut khub ......aise hi likhate rahe

ओम आर्य said...

kabile tarif gazal .....atisundar bhaw se guthe sundar shabd khub ba khud khoobsoorat ho gaye hai

गौतम राजऋषि said...

विलंब से आ रहा हूँ...मन साथ नहीं था कुछ भी करने के लिये।
इस लाजवाब ग़ज़ल के लिये बधाई मानोशी
"सिहर जाओ जो जख्म अपने दिखा दें हम" इस मिस्‍रे पे सब निछावर..सब कुछ।