Tuesday, September 01, 2009

ग़ज़ल- है फ़ासले तो बहुत पर मिली हैं राहें कहीं तो


गुज़र गया वो ज़माना, पड़ी हैं यादें कहीं तो
दबी हुई है कहानी, हैं दफ़्न लाशें कहीं तो

मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
हैं फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो

किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं तो

मैं हँस रहा हूँ हमेशा कमी नहीं है किसी की
कोई बताता तो होगा उसे ये बातें कहीं तो


बढ़ा के ग़म ढूँढते हैं कहाँ-कहाँ ’दोस्त’ अब हम
चलो उतारे ये सामां, किसी से बाँटें कहीं तो

( इस गज़ल को लिखते वक़्त ६ शेर बने। एक जो शेर और बना वो कुछ यूँ है)-

दिखा रहा था वोजैसे मुझे नहीं जानता है
उसे नहीं याद कोई सुनी हों बातें कहीं तो


(मफ़ाइलुन फ़ाइलातुन ) x 2

22 comments:

mehek said...

मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
है फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो

किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं तो
waah bahut khub

Udan Tashtari said...

एक से एक बेहतरीन अशआर..आनन्द आ गया..बहुत खूब!!

श्यामल सुमन said...

मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
है फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो

आशा का संचार करती हुई खूबसूरत रचना मानसी जी।

Unknown said...

उम्दा ग़ज़ल
पढ़ कर सुकून मिला..........

Unknown said...

उम्दा ग़ज़ल
पढ़ कर सुकून मिला..........

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

मानोशी जी ,

बहुत बढिया गजल .....खासकर ये पंक्तियाँ......

गुज़र गया वो ज़माना, पड़ी हैं यादें कहीं तो
दबी हुई है कहानी, है दफ़्न लाशें कहीं तो

हेमंत कुमार

Arshia Ali said...

Bahut sundar bhaav.
( Treasurer-S. T. )

दिगम्बर नासवा said...

मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
है फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो

KHOOBSOORAT है GAZAL ..... LAJAWAAB SHER हैं .... UMEED BANDHI HUYEE HAI GAZAL MEIN .....

अर्चना तिवारी said...

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल...pahli baar padha aapko

जसबीर कालरवि - हिन्दी राइटर्स गिल्ड said...

bhut accha kaha hai mansi ji

अभिनव said...

बहुत बढ़िया ग़ज़ल.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
है फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो

किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं तो"
बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....

संजीव गौतम said...

किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं
अच्छी ग़ज़ल हुई है मानोसी जी.

पूनम श्रीवास्तव said...

मानोशी जी ,
मुझे आपकी हर ग़ज़ल अच्छी लगती है
पर यह ग़ज़ल काफी अच्छी लगी खास कर
यह शेर ---------
बढ़ा के ग़म ढूँढते हैं कहाँ-कहाँ ’दोस्त’ अब हम
चलो उतारे ये सामां, किसी से बाँटें कहीं तो
पूनम

निर्मला कपिला said...

पहली बार आपके ब्लाग का पता मिला आप बहुत बडिया लिखती हैं पूरी गज़ल कमाल है मगर ये शेर लाजवाब है दिल को छू गया
गुज़र गया वो ज़माना, पड़ी हैं यादें कहीं तो
दबी हुई है कहानी, हैं दफ़्न लाशें कहीं तो
शुभकामनाये़

गौतम राजऋषि said...

कहीं गुमशुदा था मानोशी अपनी व्यस्तताओं में...और आज दिनों बाद आया तो इतनी प्यारी ग़ज़ल पढ़ने को मिली आपकी!

इस शेर को पढ़कर "मैं हँस रहा हूँ हमेशा कमी नहीं है किसी की / कोई बताता तो होगा उसे ये बातें कहीं तो" सोचा कि इसे अपना कहूँ...

लेकिन छठे शेर को यूं अलग से क्यूँ?

दर्पण साह said...

wah kamal ki ghazal....

makta aur matla to jaan le gya !!

"
बढ़ा के ग़म ढूँढते हैं कहाँ-कहाँ ’दोस्त’ अब हम
चलो उतारे ये सामां, किसी से बाँटें कहीं तो
"

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया अशआर पेश किये हैं आपने।
संभाल कर रखना इन्हें।
वरना बबली (उर्मी) की तरह ही
शिकायत करनी पड़ेगी।

daanish said...

किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं तो

waah !!
ravaaytee ghazal ka ek shaandaar namoona ... bahut hi achhaa sher
badhaaee

---MUFLIS---

swati said...

shandar prastuti
swati

swati said...

shandar prastuti
swati

Ramkishor Goel said...

VERY GOOD. BAHUT ACCHCHA LAGA.