गुज़र गया वो ज़माना, पड़ी हैं यादें कहीं तो
दबी हुई है कहानी, हैं दफ़्न लाशें कहीं तो
मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
हैं फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो
किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं तो
मैं हँस रहा हूँ हमेशा कमी नहीं है किसी की
कोई बताता तो होगा उसे ये बातें कहीं तो
बढ़ा के ग़म ढूँढते हैं कहाँ-कहाँ ’दोस्त’ अब हम
चलो उतारे ये सामां, किसी से बाँटें कहीं तो
( इस गज़ल को लिखते वक़्त ६ शेर बने। एक जो शेर और बना वो कुछ यूँ है)-
दिखा रहा था वोजैसे मुझे नहीं जानता है
उसे नहीं याद कोई सुनी हों बातें कहीं तो
(मफ़ाइलुन फ़ाइलातुन ) x 2
दबी हुई है कहानी, हैं दफ़्न लाशें कहीं तो
मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
हैं फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो
किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं तो
मैं हँस रहा हूँ हमेशा कमी नहीं है किसी की
कोई बताता तो होगा उसे ये बातें कहीं तो
बढ़ा के ग़म ढूँढते हैं कहाँ-कहाँ ’दोस्त’ अब हम
चलो उतारे ये सामां, किसी से बाँटें कहीं तो
( इस गज़ल को लिखते वक़्त ६ शेर बने। एक जो शेर और बना वो कुछ यूँ है)-
दिखा रहा था वोजैसे मुझे नहीं जानता है
उसे नहीं याद कोई सुनी हों बातें कहीं तो
(मफ़ाइलुन फ़ाइलातुन ) x 2
22 comments:
मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
है फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो
किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं तो
waah bahut khub
एक से एक बेहतरीन अशआर..आनन्द आ गया..बहुत खूब!!
मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
है फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो
आशा का संचार करती हुई खूबसूरत रचना मानसी जी।
उम्दा ग़ज़ल
पढ़ कर सुकून मिला..........
उम्दा ग़ज़ल
पढ़ कर सुकून मिला..........
मानोशी जी ,
बहुत बढिया गजल .....खासकर ये पंक्तियाँ......
गुज़र गया वो ज़माना, पड़ी हैं यादें कहीं तो
दबी हुई है कहानी, है दफ़्न लाशें कहीं तो
हेमंत कुमार
Bahut sundar bhaav.
( Treasurer-S. T. )
मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
है फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो
KHOOBSOORAT है GAZAL ..... LAJAWAAB SHER हैं .... UMEED BANDHI HUYEE HAI GAZAL MEIN .....
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल...pahli baar padha aapko
bhut accha kaha hai mansi ji
बहुत बढ़िया ग़ज़ल.
"मैं जो ज़मीं पे हूँ ज़र्रा, है आसमां उसकी मंज़िल
है फ़ासले तो बहुत पर, मिली हैं राहें कहीं तो
किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं तो"
बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं
अच्छी ग़ज़ल हुई है मानोसी जी.
मानोशी जी ,
मुझे आपकी हर ग़ज़ल अच्छी लगती है
पर यह ग़ज़ल काफी अच्छी लगी खास कर
यह शेर ---------
बढ़ा के ग़म ढूँढते हैं कहाँ-कहाँ ’दोस्त’ अब हम
चलो उतारे ये सामां, किसी से बाँटें कहीं तो
पूनम
पहली बार आपके ब्लाग का पता मिला आप बहुत बडिया लिखती हैं पूरी गज़ल कमाल है मगर ये शेर लाजवाब है दिल को छू गया
गुज़र गया वो ज़माना, पड़ी हैं यादें कहीं तो
दबी हुई है कहानी, हैं दफ़्न लाशें कहीं तो
शुभकामनाये़
कहीं गुमशुदा था मानोशी अपनी व्यस्तताओं में...और आज दिनों बाद आया तो इतनी प्यारी ग़ज़ल पढ़ने को मिली आपकी!
इस शेर को पढ़कर "मैं हँस रहा हूँ हमेशा कमी नहीं है किसी की / कोई बताता तो होगा उसे ये बातें कहीं तो" सोचा कि इसे अपना कहूँ...
लेकिन छठे शेर को यूं अलग से क्यूँ?
wah kamal ki ghazal....
makta aur matla to jaan le gya !!
"
बढ़ा के ग़म ढूँढते हैं कहाँ-कहाँ ’दोस्त’ अब हम
चलो उतारे ये सामां, किसी से बाँटें कहीं तो
"
बहुत बढ़िया अशआर पेश किये हैं आपने।
संभाल कर रखना इन्हें।
वरना बबली (उर्मी) की तरह ही
शिकायत करनी पड़ेगी।
किया करूँ मैं दिनो-रात उसकी बातें सभी से
मेरी भी यादों से महके किसी की रातें कहीं तो
waah !!
ravaaytee ghazal ka ek shaandaar namoona ... bahut hi achhaa sher
badhaaee
---MUFLIS---
shandar prastuti
swati
shandar prastuti
swati
VERY GOOD. BAHUT ACCHCHA LAGA.
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