Monday, October 12, 2009

माँगती हूँ मैं जो कुछ ...



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माँगती हूँ मैं जो सब कुछ
क्या वह दे पाओगे तुम?
मौन का नीरव प्रत्युत्तर,
अनछुये का भी
अहसास
बड़ी देर तक चुप्पी को तुम
बाँध रखोगे
अपने पास,
क्या स्वयं को ऐसी सीमा 
में भी
रख पाओगे तुम?

तुम्हारे इक छोटे से दु:
से जो मेरा
मन भर आये,
ढुलक पड़े आँखों से मोती
सीमायें तोड़े
बह जाये,
थोड़ी देर उँगली
पर अपने
मेरे अश्रु को रख लेना
बस थोड़े ही क्षण का आश्रय
क्या वह दे पाओगे तुम?
माँगती हूँ प्रिय मैं ..

कभी तुम्हारी आँखों में मैं
सपना बन कर
रह पाऊँ
बाहर के उस कोलाहल में
मैं धीरे से
यदि खो जाऊँ
कभी किसी छोटी सी इच्छा
के पीछे
जा कर छुप जाऊँ,
ऐसे में बिन आहट के क्या
समय लाँघ
आओगे तुम?

माँगती हूँ...

19 comments:

अनूप शुक्ल said...

बड़ी लगाव वाली कविता है! सुन्दर!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आज कुछ माँगती हूँ मैं
प्रिय क्या दे सकोगे तुम?

मौन का मौन में प्रत्युत्तर
अनछुये छुअन का अहसास
देर तक चुप्पी को बाँधे रख
खेलो अपने आसपास
क्या ऐसी सीमा में खुद को
प्रिय बांध सकोगे तुम?

इस भावभरी कविता के लिए बधाई!

नीरज गोस्वामी said...

तुम्हारे इक छोटे से दुख
से जो मेरा मन भर आये
ढुलक पड़े आँखों से मोती
सीमा तोड़ कर बह जाये
ज़रा देर उँगली पर अपने
दे देना रुकने को जगह
उसे थोड़ी देर का आश्रय

अद्भुत रचना...वाह...
नीरज

संजीव गौतम said...

कभी जब देर तक तुम्हारी
आंखों में मैं न रह पाऊँ
बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ
और किसी छोटे से स्वप्न
के पीछे जा कर छुप जाऊँ
ऐसे में बिन आहट के क्या
समय को लाँघ सकोगे तुम?
अच्छी पंक्तियां हैं. पूरा गीत अच्छा है.

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ
और किसी छोटे से स्वप्न
के पीछे जा कर छुप जाऊँ

बहुत बहुत और बहुत अच्छी लगीं ये पंक्तियां।
हेमन्त कुमार

डॉ आशुतोष शुक्ल Dr Ashutosh Shukla said...

ज़रा देर उँगली पर अपने
दे देना रुकने को जगह ....



एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर कभी भी सरल नहीं होता.....

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने!

दिगम्बर नासवा said...

बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ
और किसी छोटे से स्वप्न
के पीछे जा कर छुप जाऊँ ....

BAHOOT HI SUNDAR . HAAVPOORN RACHNA HAI .... DIL MEIN SEEDHE UTAR GAYEE ...

पूनम श्रीवास्तव said...

खूबसूरत शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति---
पूनम

सुशीला पुरी said...

bahut komal kavita...

अजय कुमार said...

bahut pyar bhari maange hain

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

कभी जब देर तक तुम्हारी
आंखों में मैं न रह पाऊँ
बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ ...

Kya khoob likhtii hein...badhayee...

जसबीर कालरवि - हिन्दी राइटर्स गिल्ड said...

badi acchi kavita hai mansi ji
khoob kaha hai
jasbir kalravi

जसबीर कालरवि - हिन्दी राइटर्स गिल्ड said...

acchi kavita hai mansi ji

ओम आर्य said...

बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,

इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य

Meena C hopra said...

bahut sunder likhti ho.

Meena

Meena C hopra said...

bahut sunder kavitaa hai.

गौतम राजऋषि said...

ये इतना प्यारा मधुर-सा गीत मुझसे छूट कैसे गया था...?
देर तक चुप्पी को बांधे खेलो अपने आसपास...

आह, लाजवाब!

Unknown said...

क्या कहूँ ? मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं . मुझे कभी शौक नहीं रहा कविता अथवा ग़ज़ल का किन्तु ये कविता तो मेरे दिल को छू गयी . कोटि कोटि धन्यवाद् मुझे कविता प्रेमी बनाने के लिए.
अखिलेश सिंह ठाकुर
मुंबई