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माँगती हूँ मैं जो सब कुछ
क्या वह दे पाओगे तुम?
क्या वह दे पाओगे तुम?
मौन का नीरव प्रत्युत्तर,
अनछुये का भी
अनछुये का भी
अहसास
बड़ी देर तक चुप्पी को तुम
बाँध रखोगे
बड़ी देर तक चुप्पी को तुम
बाँध रखोगे
अपने पास,
क्या स्वयं को ऐसी सीमा
में भी
क्या स्वयं को ऐसी सीमा
में भी
रख पाओगे तुम?
तुम्हारे इक छोटे से दु:ख
से जो मेरा
से जो मेरा
मन भर आये,
ढुलक पड़े आँखों से मोती
सीमायें तोड़े
ढुलक पड़े आँखों से मोती
सीमायें तोड़े
बह जाये,
थोड़ी देर उँगली
थोड़ी देर उँगली
पर अपने
मेरे अश्रु को रख लेना
बस थोड़े ही क्षण का आश्रय
क्या वह दे पाओगे तुम?
मेरे अश्रु को रख लेना
बस थोड़े ही क्षण का आश्रय
क्या वह दे पाओगे तुम?
माँगती हूँ प्रिय मैं ..
कभी तुम्हारी आँखों में मैं
कभी तुम्हारी आँखों में मैं
सपना बन कर
न रह पाऊँ
बाहर के उस कोलाहल में
बाहर के उस कोलाहल में
मैं धीरे से
यदि खो जाऊँ
कभी किसी छोटी सी इच्छा
के पीछे
के पीछे
जा कर छुप जाऊँ,
ऐसे में बिन आहट के क्या
ऐसे में बिन आहट के क्या
समय लाँघ
आओगे तुम?
माँगती हूँ...
19 comments:
बड़ी लगाव वाली कविता है! सुन्दर!
आज कुछ माँगती हूँ मैं
प्रिय क्या दे सकोगे तुम?
मौन का मौन में प्रत्युत्तर
अनछुये छुअन का अहसास
देर तक चुप्पी को बाँधे रख
खेलो अपने आसपास
क्या ऐसी सीमा में खुद को
प्रिय बांध सकोगे तुम?
इस भावभरी कविता के लिए बधाई!
तुम्हारे इक छोटे से दुख
से जो मेरा मन भर आये
ढुलक पड़े आँखों से मोती
सीमा तोड़ कर बह जाये
ज़रा देर उँगली पर अपने
दे देना रुकने को जगह
उसे थोड़ी देर का आश्रय
अद्भुत रचना...वाह...
नीरज
कभी जब देर तक तुम्हारी
आंखों में मैं न रह पाऊँ
बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ
और किसी छोटे से स्वप्न
के पीछे जा कर छुप जाऊँ
ऐसे में बिन आहट के क्या
समय को लाँघ सकोगे तुम?
अच्छी पंक्तियां हैं. पूरा गीत अच्छा है.
बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ
और किसी छोटे से स्वप्न
के पीछे जा कर छुप जाऊँ
बहुत बहुत और बहुत अच्छी लगीं ये पंक्तियां।
हेमन्त कुमार
ज़रा देर उँगली पर अपने
दे देना रुकने को जगह ....
एक ऐसा प्रश्न जिसका उत्तर कभी भी सरल नहीं होता.....
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने!
बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ
और किसी छोटे से स्वप्न
के पीछे जा कर छुप जाऊँ ....
BAHOOT HI SUNDAR . HAAVPOORN RACHNA HAI .... DIL MEIN SEEDHE UTAR GAYEE ...
खूबसूरत शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति---
पूनम
bahut komal kavita...
bahut pyar bhari maange hain
कभी जब देर तक तुम्हारी
आंखों में मैं न रह पाऊँ
बोझिल से सपनों के भीड़
में धीरे से गुम हो जाऊँ ...
Kya khoob likhtii hein...badhayee...
badi acchi kavita hai mansi ji
khoob kaha hai
jasbir kalravi
acchi kavita hai mansi ji
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
bahut sunder likhti ho.
Meena
bahut sunder kavitaa hai.
ये इतना प्यारा मधुर-सा गीत मुझसे छूट कैसे गया था...?
देर तक चुप्पी को बांधे खेलो अपने आसपास...
आह, लाजवाब!
क्या कहूँ ? मेरे पास तो शब्द ही नहीं हैं . मुझे कभी शौक नहीं रहा कविता अथवा ग़ज़ल का किन्तु ये कविता तो मेरे दिल को छू गयी . कोटि कोटि धन्यवाद् मुझे कविता प्रेमी बनाने के लिए.
अखिलेश सिंह ठाकुर
मुंबई
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