ओ रे बचपन जीवन के संग
क्यों कट्टी मिट्ठी करता है
बूढ़ी कबड्डी
चक्कर घिन्नी
अक्कड़ बक्कड़
बम्बई दिल्ली
पुलिस पकड़ती
अंडा चोरी
मां से लड़कर
डंडा गिल्ली
ओ रे बचपन छूट गया मन
तेरी कुटिया कहीं पड़ा है
छ: बाराती
दो की शादी
चांद की नगरी
की शहज़ादी
बाँहों की डोली
में चढ़ कर
मैके से मैके
की सवारी
ओरे बचपन सादा जीवन
किस खूँटी से टंगा पड़ा है
नीली बारिश
पीली छतरी
छप-छप जूते
गुस्सा बदरी
मुट्ठी में
मखमल का कीड़ा
कीचड़, छीटें
मैला कुरता
ओ रे बचपन सूख गया तन
भीगा मन तुझ में अटका है
क्यों कट्टी मिट्ठी करता है
बूढ़ी कबड्डी
चक्कर घिन्नी
अक्कड़ बक्कड़
बम्बई दिल्ली
पुलिस पकड़ती
अंडा चोरी
मां से लड़कर
डंडा गिल्ली
ओ रे बचपन छूट गया मन
तेरी कुटिया कहीं पड़ा है
छ: बाराती
दो की शादी
चांद की नगरी
की शहज़ादी
बाँहों की डोली
में चढ़ कर
मैके से मैके
की सवारी
ओरे बचपन सादा जीवन
किस खूँटी से टंगा पड़ा है
नीली बारिश
पीली छतरी
छप-छप जूते
गुस्सा बदरी
मुट्ठी में
मखमल का कीड़ा
कीचड़, छीटें
मैला कुरता
ओ रे बचपन सूख गया तन
भीगा मन तुझ में अटका है
10 comments:
आनन्द आया-बेहतरीन अभिव्यक्ति बचपन को याद करते!
नीली बारिश
पीली छतरी
छप-छप जूते
गुस्सा बदरी
मुट्ठी में
मखमल का कीड़ा
कीचड़, छीटें
मैला कुरता
ओ रे बचपन सूख गया तन
भीगा मन तुझ में अटका है
वाह बहुत सुन्दर रचना बचपने की याद दिला दी। शायद जीवेन के स्वर्निम पल होते हैं बचपन । शुभकामनायें
बचपन के कितने अनछुए पल आँखों से गुज़र गये ............ बहुत ही गहरी अनुभूति लिए है ये रचना ..... बचपन के खिलोनों की तरह सॅंजो कर रखने वाली रचना ..........
छ: बाराती
दो की शादी
चांद की नगरी
की शहज़ादी
बाँहों की डोली
में चढ़ कर
मैके से मैके
की सवारी
ओर बचपन सादा जीवन
किस खूँटी से टंगा पड़ा है
sunder abhivaykti
आपने बहुत प्यारी बालकविता लिखी है!
बधाई!
बहुतही सुन्दर रचना!!
manasi ji
aapane to apani bachapan ki
kavita se hamen yaadon ke tale chhupi
maasumiyat bhare bachapan main punah vapas pahuncha diya.jo sabhi ke liye ek anmol ratan hai.
poonam
मानसी जी
बेहद खुबसूरत रचना
बहुत बहुत आभार ग़ज़ल
यह गीत भी अच्छा है मगर इस में एक लाईन नहीं जम रही है...
तेरी कुटिया कहीं पड़ा है
'कुटिया' है तो पड़ी है होना चाहिए ..
मेरे विचार से ऐसा होता तो अधिक अच्छा होता..
तू कुटिया में व्यर्थ पड़ा है
...यह मेरी माथापच्ची है ..मैं गलत भी हो सकता हूँ.
बे.आ. जी,
जो मन छूट गया है, वह मन तेरी कुटिया में कहीं पड़ा है।
सादर
मानोशी
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