Monday, February 01, 2010

बाट तेरी जोहती हूँ


आज भी मैं
बाट तेरी जोहती हूँ |

रात जब तू खो गया था,
आँख से चुपचाप बह कर,
झर गया था एक अश्रु
मन का आर्तनाद बन कर |
पथ अभी भीगा हुआ है
फिर बुहारा नहीं आँगन,
राह अब भी देखती हूँ |
बाट तेरी जोहती हूँ |

सत्य ये जीवन मनोरम
हर इक पल है बहुत प्यारा,
कई छोटी-बड़ी खुशियों
से महकता बाग़ सारा,
पर कहीं कुछ छूटता है
रह गया है कुछ अधूरा,
उस अधूरी कल्पना में
नित नया रंग जोड़ती हूँ |
बाट तेरी जोहती हूँ|

था नही साकार पर तू
स्वप्न भी कोई नहीं था,
संग जीते हर इक पल में
अंग-अंग बँधा कहीं था.
तू फिरेगा फिर उसी मन
फिर सुहाना रूप धर कर,
है यही विश्वास, अब ले
बंद पलकें खोलती हूँ |
बाट तेरी जोहती हूँ |

9 comments:

वाणी गीत said...

अधूरी कल्पना में नित नए रंग जोडती कविता मन भाई ....!!

Udan Tashtari said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति!!

अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ said...

अब उसकी बाट क्योंकर जोहिये जी
उसे मन में ही अपने खोजिये जी
मिलेगा बहुत ही सन्निकट अपने
बंद आँखों को भी मत खोलिए जी
अच्छी रचना है|
साधु

Vishal Gaurav said...

अंग-अंग बँधा कहीं था...

mindblowing...

Shaurya said...

Some very nice lines....really loved them..

Shaurya
www.kavya-kusum.blogspot.com

36solutions said...

बहुत सुन्‍दर भावप्रद कविता के लिए धन्‍यवाद मानसी जी.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ...............

neelima garg said...

beautiful poems...

kavya-janak said...

good! very nice touching line

neeraj