Sunday, March 28, 2010

एक सपना जी रही हूँ

एक सपना जी रही हूँ

पारदर्शी काँच पर से
टूट-बिखरे झर रहे कण
  विहँसता सा खिल रहा है
आँख चुँधियाता हर इक क्षण
  कुछ दिनों का जानकर सुख
मधु कलश सा पी रही हूँ

एक सपना जी रही हूँ

वह अपरिचित स्पर्श जिसने
छू लिया था मेरे मन को
अनकही बातों ने फिर धीरे
से खोली थी गिरह जो
और तब से जैसे हाला
जाम भर कर पी रही हूँ
 
एक सपना जी रही हूँ

इक सितारा माथ पर जो
तुमने मेरे जड़ दिया था
और भँवरा बन के अधरों
से मेरे रस पी लिया था
उस समय के मदभरे पल
ज्यों नशे में जी रही हूँ

एक सपना जी रही हूँ

19 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सपना जिया जाये या जीवन ही सपना बन जाये । क्या बात है ।

रचना दीक्षित said...

इक सितारा माथे पर जो
तुमने मेरे जड़ दिया था
और भँवरा बन के अधरों
से मेरे रस पी लिया था
उस समय के मदभरे पल
ज्यों नशे में जी रही हूँ
सुंदर अभिव्यक्ति, गंभीर विचार. सुंदर शब्द कविता

अजित गुप्ता का कोना said...

अच्‍छी मन को छूने वाली अभिव्‍यक्ति, बधाई।

अनामिका की सदायें ...... said...

वह तुम्हारा स्पर्श अजाना
जिसने छू लिया था मन को
अनकही बातों ने फिर धीरे
से खोली थी गिरह जो
और तब से जैसे हाला
जाम भर कर पी रही हूँ

waah kya baat hai...kitni saralta se khol dali man ki girah...

इक सितारा माथे पर जो
तुमने मेरे जड़ दिया था
और भँवरा बन के अधरों
से मेरे रस पी लिया था
उस समय के मदभरे पल
ज्यों नशे में जी रही हूँ

bahut khoob...madbhare pal kisi nashe se kam nahi hote..

के सी said...

मुग्ध करने वाली मधुरता है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपका सुन्दर, सुखद, सलोना सपना अच्छा लगा!

Udan Tashtari said...

सुन्दर मधुर गीत!

संजय भास्‍कर said...

अच्‍छी मन को छूने वाली अभिव्‍यक्ति, बधाई।

संजय भास्‍कर said...

से मेरे रस पी लिया था
उस समय के मदभरे पल
ज्यों नशे में जी रही हूँ

एक सपना जी रही हूँ


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

गौतम राजऋषि said...

अच्छा लगा आपकी लेखनी से ये अंदाज़े-बयां भी...

"वह तुम्हारा स्पर्श अजाना
जिसने छू लिया था मन को
अनकही बातों ने फिर धीरे
से खोली थी गिरह जो
और तब से जैसे हाला
जाम भर कर पी रही हूँ"

सुंदर !

सु-मन (Suman Kapoor) said...

भावों का बहुत सुन्दर चित्रण

नितिन माथुर said...

आपका ब्लॉग काफी दिन पहले देखा था। व्यस्तता के चलते पढ़ नहीं पाया। आज पढ़ा। वाकई बहुत अच्छा लगा। जिस तरह आपने अपने ब्लॉग्स की सज्जा की है वो भी बहुत मनमोहक है।
कला सीखी नहीं जा सकती। यह मन से उपजती है। आप की कलाप्रियता देखकर एक बात मैं आपके बारे में जान गया हूं। That you are blessed. Enjoy your life.

सिद्धार्थ प्रियदर्शी said...

सुन्दर अभिव्यक्ति !

Pawan Kumar said...

इक सितारा माथे पर जो
तुमने मेरे जड़ दिया था
और भँवरा बन के अधरों
से मेरे रस पी लिया था
उस समय के मदभरे पल
ज्यों नशे में जी रही हूँ.........
आपकी इस प्रस्तुति पर दस में दस अंक......

Anonymous said...

ekdum se hriday mein utar gayi yeh kavita...
bahut behtareen....
mere blog par bhi jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega,.....

पूनम श्रीवास्तव said...

बहुत सुन्दर भावों की बेहतरीन प्रस्तुति----

अंजना said...

बहुत बढिया ..

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

ek sapna ji rahu hu ,behtar sabad chitra hai ,sundar bhav hai ,badhai.
or achchi rachnayen likhe.

Anonymous said...

kavita achhi lagi...dubaara padhne chal aaya....
mere blog par is baar..
वो लम्हें जो शायद हमें याद न हों......
jaroor aayein...