दीप बना कर याद तुम्हारी, प्रिय, मैं लौ बन कर जलती हूँ
प्रेम-थाल में प्राण सजा कर लो तुमको अर्पण करती हूँ।
अकस्मात ही जीवन मरुथल में पानी की धार बने तुम,
पतझड़ की ऋतु में जैसे फिर जीवन का आधार बने तुम,
दो दिन की इस अमृत वर्षा में भीगे क्षण हृदय बाँध कर,
आँसू से सींचा जैसे अब बन कर इक सपना पलती हूँ।
दीप बना कर...
मेरे माथे पर जो तारा अधरों से तुमने आँका था,
पाकर के वह स्पर्श मृदुल यह गात रक्त्मय निखर उठा था,
उन चिह्नों को अंजुरि में भर पीछे डाल अतीत अंक में,
दे दो ये अनुमति अब प्रियतम, अगले जीवन फिर मिलती हूँ।
दीप बना कर...
तुम रख लेना मेरी स्मृति को अपने मन के इक कोने में,
जैसे इक छोटा सा तारा दूर चमकता नील गगन में,
दग्ध ह्रदय में धधक रहे आहत पल के दंशों को अपने ,
आहुति के आँसू से धो कर आंगन लो अब मैं चलती हूँ।
दीप बना कर...
प्रेम-थाल में प्राण सजा कर लो तुमको अर्पण करती हूँ।
अकस्मात ही जीवन मरुथल में पानी की धार बने तुम,
पतझड़ की ऋतु में जैसे फिर जीवन का आधार बने तुम,
दो दिन की इस अमृत वर्षा में भीगे क्षण हृदय बाँध कर,
आँसू से सींचा जैसे अब बन कर इक सपना पलती हूँ।
दीप बना कर...
मेरे माथे पर जो तारा अधरों से तुमने आँका था,
पाकर के वह स्पर्श मृदुल यह गात रक्त्मय निखर उठा था,
उन चिह्नों को अंजुरि में भर पीछे डाल अतीत अंक में,
दे दो ये अनुमति अब प्रियतम, अगले जीवन फिर मिलती हूँ।
दीप बना कर...
तुम रख लेना मेरी स्मृति को अपने मन के इक कोने में,
जैसे इक छोटा सा तारा दूर चमकता नील गगन में,
दग्ध ह्रदय में धधक रहे आहत पल के दंशों को अपने ,
आहुति के आँसू से धो कर आंगन लो अब मैं चलती हूँ।
दीप बना कर...
15 comments:
दीप बना कर यादों का किसी के विरह में जलना ...
आहुति के आंसू ...या आंसुओं की आहुति से आँगन धोना ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...!!
तुम रख लेना मेरी स्मृति को अपने मन के इक कोने में,
जैसे इक छोटा सा तारा दूर चमकता नील गगन में,
मौन रो रहे दंश हृदय के, घाव रक्त से ज्यों हो लथपथ ,
आहुति के आँसू से धो कर आंगन लो अब मैं चलती हूँ।
दीप बना कर...
मानोशी जी, बहुत ही सुन्दर और संवेदनात्मक विरह गीत लिखा है आपने। आज अतुकान्त कविताओं के युग में ऐसे गीत बहुत कम लिखे जा रहे हैं। काफ़ी दिनों से आप मेरे ब्लाग पर भी नहीं आईं-----? पूनम
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
मेरे माथे पर जो टीका होठों से तुमने टाँका था,
अंग-अंग हर स्पर्श तुम्हारा लाल दग्ध हो मुखर उठा था,
उन चिह्नों को अंजुरि में भर पीछे डाल अतीत अंक में,
दे दो ये अनुमति अब प्रियतम, अगले जीवन फिर मिलती हूँ
प्रेम की एक बेहतरीन अभिव्यक्ति...बढ़िया गीत...प्रस्तुति के लिए आभार
मौन रो रहे दंश हृदय के, घाव रक्त से ज्यों हो लथपथ ,
आहुति के आँसू से धो कर आंगन लो अब मैं चलती हूँ।
-ओह! भावपूर्ण रचना!
bahut bahut khoobsoorat..prem me tyaag...aur fir apni upasthiti banaye rehne ka prayas...waah...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
bahut hi achhi rachna....
mere blog mein is baar nayi duniya...
http://i555.blogspot.com/
तुम रख लेना मेरी स्मृति को अपने मन के इक कोने में,
जैसे इक छोटा सा तारा दूर चमकता नील गगन में,
मौन रो रहे दंश हृदय के, घाव रक्त से ज्यों हो लथपथ ,
आहुति के आँसू से धो कर आंगन लो अब मैं चलती हूँ।
दीप बना कर...
bahut sundar rachna
bandhai aap ko is ke liye
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com
मेरे माथे पर जो तारा अधरों से तुमने आँका था,
अंग-अंग हर स्पर्श तुम्हारा लाल दग्ध हो मुखर उठा था,
उन चिह्नों को अंजुरि में भर पीछे डाल अतीत अंक में,
दे दो ये अनुमति अब प्रियतम, अगले जीवन फिर मिलती हूँ।
bahut bahut achcha laga ye geet
Maansi si
dard bhi hai pyaar bhi hai
bichadne ki anumati ...
aur milne ka wada bhi
bahuUT KHUB
SHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
bahuUT KHUB
SHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
प्रशंसा की अभिव्यक्ति के शब्द नहीं हैं । इस भाव को गुंजायमान करती सुन्दरतम रचना ।
बेहद भावपूर्ण रचना
सिन्दर रचना के लिए बधाई!
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