सखि बसंत आया ।
कोयल की कूक तान,
व्याकुल से हुए प्राण,
बैरन भई नींद आज,
साजन संग भाया ।
सखि बसंत आया ।
लगी प्रीत अंग-अंग,
टेसूओं के लाल रंग,
बिखरी महुआ सुगंध,
मदिरा मद छाया ।
सखि बसंत आया ।
सखि बसंत आया ।
पाँव थिरक देह हिलक,
सरसों की बाल किलक,
धवल धूप आज छिटक,
सोन जग नहाया ।
सखि बसंत आया ।
सखि बसंत आया ।
अमुवा की डार-डार,
पवन संग खेल हार,
उड़ गुलाल रंग मार,
सुखानंद लाया ।
सखि बसंत आया ।
7 comments:
व्याकुल से हुए प्राण..
पिचकारी की धार,
गुलाल की बौछार,
अपनों का प्यार,
यही है यारों होली का त्यौहार.
होली की ढेरों बधाई व शुभकामनायें ...जीवन में आपके सारे रंग चहकते ,महकते ,इठलाते ,बलखाते ,मुस्कुराते ,रिझाते व हसाते रहे
manish jaiswal
bilaspur
chhattisgarh
होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
बहुत सुन्दर रचना!
आपको पूरे परिवार सहित होली की बहुत-बहुत शूभकामनाएँ!
होली आते आते ही बसंत के रंग को हम आत्मसात कर पाते हैं।
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
RANG BIRANGI RACHNA.....BAHUT SUNDAR..
Post a Comment