Sunday, January 15, 2012

पुन: शीत का आँचल फहरा


पिछले सप्प्ताह बर्फ़ पड़ी। बर्फ़ पड़ने के बाद वाले दिन, जब पूरी ज़मीन ढकी होती है सफ़ेद रूई से, और निकलती है खूबसूरत झिलमिलाती धूप, जब  -२५ डिग्री सेलसियस तक तापमान नीचे जाता है,  तब कुछ ऐसी होती है ठंड की सुबह, दोपहर और रात यहाँ, कनाडा में...



पुन: शीत का आँचल फहरा


जैसे मोती पात जड़े हैं,
हीरक कण झरते, बिखरे हैं,
डाली-डाली लुक-छुप, लुक-छुप
दल किरणों के खेल रहे हैं,
गोरे आसमान के सर पर
धूप ने बाँधा झिलमिल सेहरा |

पुन: शीत का आँचल फहरा।


बूढ़ी सर्दी हवा सुखाती,
कलफ़ लगा कर कड़क बनाती,
छटपट उसमें फँसी दुपहरी
समय काटने ठूँठ उगाती,
चमक रहा है सूर्य प्राणपण,
देखो हारा सा वह चेहरा |

पुन: शीत का आँचल फहरा।


रात कँटीली काली डायन,
सहमे घर औ’ राहें निर्जन,
है अधीन जादू निद्रा के 
सभी दिशायें, जड़ औ’ जीवन,
अट्टहास करती रानी जब
सारा जग ज्यों जम कर ठहरा |

पुन: शीत का आँचल फहरा |

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

यह ईश्वर की सुख संरचना..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत चित्रण

abcd said...

choti si kavita me sardi ka ek puraa din beet gayaa....sundar sahbd.


subah aayi ...dopahar hui .....fir raat .....silsilewaar

carefully,beautifully and brillianlly structured.

bas ek shikaayat hai ki subah me heere the moti the sehraa thaa,aakhri para me to sardi ko "raani" kaha....ye dopahar me bechaari बूढी kyo ho gayi??!!