Tuesday, September 25, 2012

गूढ़ की खोज

गूढ़ बातें...
लिखना, समझना, फिर तौलना...
अचकची सी, कच्ची-पक्की
नासमझी की
मगर गूढ़...!

रास्ता पका हुआ
मेहनत से कसा हुआ
चलना आसान है बनने के बाद उस पर
लयबद्ध होती हैं।
बनने में क्या लगा
कौन सोचता है?
पगडंडी ऊबड़-खाबड़
मगर ऐसे ही बनती गई
लोकगीत की मिठास सी
सच्ची सरल...
मगर लोगों को चलना कहाँ भाता है
पगडंडियों पर?
कंकड़ चुभते हैं
चप्पल में फँसते हैं...
लोगों को भाता है वह
जो समझ न आयें
एक रहस्य की ओर ले जाये
ऐसे रस्ते...न कच्चे, न पक्के...
न पगडंडी गांव की ओर जाती हुई
न सड़कें जो मंज़िल तक पहुँचायें
गूढ़ की खोज...
भटकते हुए कई रास्ते
आज गूढ़ की खोज में...

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

गूढ़ रास्तों की खोज में जीवन और संगूढ़ हो जाता है।