Saturday, February 13, 2016

प्यार और पागलपन

तुम कहते  हो
तुम ऐसी क्यों हो?
कोई तुम सा नहीं,
कोई पागल न हो जो तुम्हारे साथ रहे...?
अब सच  यकीं होने लगा है मुझे, 
इतनी दूरी में भी पास का अहसास कर लेना
बातो से ही मन बहला लेना
और एक दिन अचानक खोने के डर से 
सब तोड़ देना,
मेरा पागलपन,
तुम्हारा प्यार,
कुछ एक जैसा ही तो है. 




4 comments:

अजय कुमार झा said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ....

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प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

क्या बात है !.....बेहद खूबसूरत रचना....

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " औरत होती है बातूनी " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !