Thursday, March 01, 2012



आज दुनिया मना रही होली
शोर फिर से मचा रही होली

मीठी रस्में निभा रहे हैं कुछ
गालियाँ भी निभा रही होली

मैल मन का जला नहीं अब तक
कब से दुनिया जला रही होली

साल दर साल बदलते चेहरे
अक़्स कितने मिटा रही होली

डिस्को पब हो गया है कल्चर जो
फाग-होरी भुला रही होली

6 comments:

M VERMA said...

मैल मन का जला नहीं अब तक
कब से दुनिया जला रही होली
सच तो यही है ...

प्रवीण पाण्डेय said...

होली आयी रे..

दिगम्बर नासवा said...

मैल मन का जला नहीं अब तक
कब से दुनिया जला रही होली ...

बहुत खूब ... इन चंद लाइनों में जीवन का सच लिख दिया ...

Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर प्रस्तुति.... बहुत बहुत बधाई...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...




मैल मन का जला नहीं अब तक
कब से दुनिया जला रही होली

साल दर साल बदलते चेहरे
अक़्स कितने मिटा रही होली


आहाहा... होली के बाद इतनी खूबसूरत रचना पढ़ कर आनंद आ गया
मानसी जी
आपको दिल से बधाई !

अगली होली तक के लिए मंगलकामनाएं !
नवरात्रि और नवसंवत की शुभकामनाएं