आज दुनिया मना रही होली
शोर फिर से मचा रही होली
मीठी रस्में निभा रहे हैं कुछ
गालियाँ भी निभा रही होली
मैल मन का जला नहीं अब तक
कब से दुनिया जला रही होली
साल दर साल बदलते चेहरे
अक़्स कितने मिटा रही होली
डिस्को पब हो गया है कल्चर जो
फाग-होरी भुला रही होली
6 comments:
मैल मन का जला नहीं अब तक
कब से दुनिया जला रही होली
सच तो यही है ...
होली आयी रे..
मैल मन का जला नहीं अब तक
कब से दुनिया जला रही होली ...
बहुत खूब ... इन चंद लाइनों में जीवन का सच लिख दिया ...
बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
सुन्दर प्रस्तुति.... बहुत बहुत बधाई...
♥
मैल मन का जला नहीं अब तक
कब से दुनिया जला रही होली
साल दर साल बदलते चेहरे
अक़्स कितने मिटा रही होली
आहाहा... होली के बाद इतनी खूबसूरत रचना पढ़ कर आनंद आ गया
मानसी जी
आपको दिल से बधाई !
अगली होली तक के लिए मंगलकामनाएं !
नवरात्रि और नवसंवत की शुभकामनाएं
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