एक जीवन जी गई...
पल-पल जीया
बूँद-बूँद पीया
मिट्टी से हवा तक
पानी से आग तक
बादल से धरती तक
लपेट लिया सब कुछ
और फिर भी जान न सकी
तुम्हारे अस्तित्व की वजह,
मेरे जीवन का कारण,
और हम दोनों के होने का रहस्य...
आसपास रहा तुम्हारे और मेरे सिवा
बहुत कुछ...
और फिर भी बस मैं और तुम ही रहे...!
9 comments:
बहुत बढिया पंक्तिया
फिर भी बस मैं और तुम ही रहे !
बहुत खूब !
बहुत गहरी पंक्तियाँ..
भले ही छोटी हो मगर है बहुत भावप्रणव रचना!
दो तो फिर भी है ...
गहन भाव लिए
सुन्दर अभिव्यक्ति..
:-)
गहन भाव लिए
सुन्दर अभिव्यक्ति..
:-)
और फिर भी बस मैं और तुम ही रहे...!
kya kahen hain...
behtareen..
क्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
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प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
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