Tuesday, September 25, 2012


एक जीवन जी गई...

पल-पल जीया
बूँद-बूँद पीया
मिट्टी से हवा तक
पानी से आग तक
बादल से धरती तक
लपेट लिया सब कुछ
और फिर भी जान न सकी
तुम्हारे अस्तित्व की वजह,
मेरे जीवन का कारण,
और हम दोनों के होने का रहस्य...
आसपास रहा तुम्हारे और मेरे सिवा
बहुत कुछ...
और फिर भी बस मैं और तुम ही रहे...!

9 comments:

travel ufo said...

बहुत बढिया पंक्तिया

वाणी गीत said...

फिर भी बस मैं और तुम ही रहे !
बहुत खूब !

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत गहरी पंक्तियाँ..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भले ही छोटी हो मगर है बहुत भावप्रणव रचना!

आनंद said...

दो तो फिर भी है ...

मेरा मन पंछी सा said...

गहन भाव लिए
सुन्दर अभिव्यक्ति..
:-)

मेरा मन पंछी सा said...

गहन भाव लिए
सुन्दर अभिव्यक्ति..
:-)

मुकेश कुमार सिन्हा said...

और फिर भी बस मैं और तुम ही रहे...!
kya kahen hain...
behtareen..

Dinesh pareek said...

क्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ