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Sunday, April 18, 2010

याद पिया की आये

याद पिया की आये, ये दुख सहा न जाये...

सबसे पहले the authentic - बड़े गुलाम अली खां की आवाज़ में ...ये दर्द और कहाँ...



और एक नया तरीक़ा, रीमिक्स? मगर असरदार है- वडाली बंधु की आवाज़- निराला



फिर सुनिये उभरती हुईं- कौशिकी चक्रवर्ती की आवाज़- अब इतना बस चुके हैं बड़े गुलाम अली खां साहब जैसे लगती है बस उन्हीं की हो कर रह गई है ये ठुमरी, किसी और की आवाज़ में सुनना कुछ अजीब सा ही लगता है।

Saturday, November 28, 2009

श्रीकांत आचार्य- आमार शाराटा दीन

बँगला गानों की शृंखला में, ये एक अत्यंत मधुर गीत आज, श्रीकांत आचार्य की आवाज़ में। मैंने इस गीत को पहली बार कुछ दिनों पहले ही, बंगाल से एक दोस्त के भेंट करने पर सुना।  इतना मधुर संगीत और मख़मली आवाज़ में इस गीत को सुन कर भाषा को जानने न जानने की ज़रूरत नहीं रह जाती है। फिर भी शब्द दे रही हूँ साथ में-



बंग्ला मे गीत- (नीचे हिन्दी में भावानुवाद)

आमार शारा टा दीन, मेघला आकाश बृष्टि तोमाके दीलाम
शुधु श्राबन संध्या टुकु तोमार थेके चेये निलाम

हृदयेर जानाला ए चोख मेले राखि
बाताशेर बांशी ते कान पेते थाकी
ताके ई काछे डेके
मोनेर आँगिना थेके
बृष्टि तोमाके तोबू फिरिये दिलाम

तोमार हाथ ए ई होक रात्रि रचना
ए आमार स्वप्न सूखेर भाबना
चेयेछि पेते जाके चाईना हाराते ताके
बृष्टि तोमाके ताई फिरे चाइलाम

हिन्दी में भावानुवाद-

मेरा सारा ये दिन, मेघमय आकाश, वृष्टि तुम्हें दे दी मैंने
बस श्रावन संध्या ही एक तुम से मांग ली है मैंने

हृदय की खिड़की पर आंखें बिछाये बैठा हूँ
हवा के बंसी पर कान लगाये बैठा हूँ
उसे ही पास बुला कर
मन के आंगन से
बृष्टि तुम्हें फिर भी लौटा रहा हूँ


तुम्हारे हाथों ही हो रात्रि रचना
यही मेरा स्वप्न है, सुख की भावना
जिसे पाना चाहा है, उसे चाहता नहीं खोना
वृष्टि तुम्हें इसलिये वापस मांगता हूँ

Thursday, November 12, 2009

भालोबाशो शुधु भालोबाशो- हेमंत कुमार


बचपन में इस गाने को सुनती थी, एल.पी. रेकार्ड पर। आज ये आनलाइन मिल गई। हेमंत कुमार द्वारा गाया ये बंग्ला गीत- भालोबाशो शुधु भालोबाशो। इसके रचनाकार कौन हैं नहीं जानती, पर शायद संगीत हेमंत कुमार का अपना हो, पक्का पता नहीं। इस गाने के मिठास के क्या कहने।



बंग्ला गीत (नीचे हिन्दी में भावानुवाद)


अनेक रात
झिमोनो चाँद
शब्द नेई
कथा कोयोना ना
भालोबाशो शुधू भालोबाशो

माझे-माझे
पाता देर
काना कानी
फिश-फिश
बहू दू्रे आकाशे ते
तारादेर म्जलिस
दूटी हृदय
स्वप्नमय
अनुभवे बाधा दियो ना

जूई बोने शिशिरे
आनागोना टूक-टूक
जोनाकी आर झाउ शाखार
लूकोचूरी चूप-चूप
दूटी चोखे जोतो कोथा
संकेते शोरे जेओ ना
भालोबाशो शुधू भालोबाशो

हिन्दी भावानुवाद 

गहरी रात
नशीला चांद
सन्नाटा
बातें न करो
प्रेम...बस प्रेम

कभी-कभी
पत्तों की
कानाफ़ूसी
फिस-फिस
बड़े दूर आकाश में
तारों की मजलिस
दो हृदय
स्वप्नमय
अनुभूति में
बाधा न बनो
प्रेम बस... प्रेम

जूही बन में
शिशिर के बीच
आनाजाना
टुक-टुक
जुगनु और
झाउ की डार
लुकाछिपी
चुप-छुप
दो आँखों में
जितनी बातें
इशारों से
दूर न जाओ
प्रेम...बस प्रेम

Saturday, October 17, 2009

जब दीप जले आना

दीपावली की सुंदर शाम, कई सुंदर पल, घर में लक्ष्मी के आगमन की तैयारी, मन में खुशियों के मेले, कई आने वाले सुंदर पलों की कल्पना और भगवान से प्रार्थना कि सब ऐसा ही सुंदर चलता रहे, सबके लिये। इन्हीं भावनाओं के साथ स्वागत है दीवाली तुम्हारा- २००९।

अभी यहाँ दीवाली शुरु नहीं हुई है, मगर दीवाली की उमंगें, दोस्तों से मिलना-जुलना शुरु हो चुका है। दीवाली की शाम आज कुछ अलग सी कटेगी, पं. रविशंकर के सितारवादन के साथ। बेसब्री से इंतज़ार है।

मेरा एक पसंदीदा गीत-

Monday, August 17, 2009

यादें- क्या बात थी कि जो भी सुना अनसुना हुआ

पुरानी कई यादों को संजो कर ले आई हूँ इस बार भारत से। १८-१९ साल की उम्र में आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित मेरी गाई ग़ज़लें पापा के पुराने टेप-रिकार्डर में मिली। साथ ही मिला एक पुराना पीला अख़बार। पापा ने कितने जतन से ये सब संभाल के रखा है।

उन ग़ज़लों में से एक ग़ज़ल यहाँ सहेज रही हूँ।



और साथ ही वो अखबार की क्लिप।

Saturday, May 09, 2009

रवीन्द्र जयंती पर- भालोबाशा भालोबाशा

आज रवीन्द्र जयंती पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का ये गीत प्रस्तुत है। (इसके भावार्थ की मैंने हिन्दी में अनुवाद की चेष्टा की है)।



यू-ट्यूब से मुझे एक विडियो भी मिला इस गाने का। फ़िल्म श्रीमान पृथ्वीराज-


हिन्दी में अनुवाद

सखी चिंता (भावना) किसे कहते हैं
सखी यातना किसे कहते हैं
तुम जो कहते हो दिन रात
प्रेम...प्रेम...
प्रेम क्या है
क्या ये सिर्फ़ पीड़ादायी है?
वो क्या केवल ही आँखों का पानी है
क्या वो केवल दुख का है श्वास
तब क्यों लोग सुख छोड़ कर
करते हैं ऐसे दुख की आस ?

मेरे आँखों में तो सभी सुंदर है
सभी नूतन है, सभी विमल
सुनील आकाश, श्यामल कानन
विशद ज्योत्सना, कुसुम कोमल
ये सभी मेरे जैसे केवल हँसते हैं
हँस खेल के मरने की इच्छा रखते हैं
न मैं वेदना जानती हूँ न ही रोना
न ही शौक़ की यातना कोई
फूल जैसे हँसते हँसते झर जाते हैं
जैसे ज्योत्सना भी हँस कर मिल जाती है
हँसते हँसते ही तारे भी आकाश से गिर जाते हैं

मेरे जैसा सुखी कौन है
आओ सखी आओ मेरे पास
मेरे सुखी हृदय के सुख गान सुन कर
तुम्हारे हृदय खिल उठेंगे
जो प्रतिदिन तुम रोती हो
एक दिन आओ और हँसो
एक दिन सब विषाद भुला कर आओ
सब मिल कर हम गायें
सखी....

बंग्ला में-
सखी भावना काहारे बौले
सखी यातना काहारे बौले
तोमरा जे बौलो दिबोशो रजनी
भालोबाशा भालोबाशा
सखी भालोबाशा कारे कहे
शे की केबल-ई जातनामय
लोके कोरे कि सुखेरि तोरे
अमोनो दुखेरो आस
आमारी चोखे तो सकल ही शोभोन
सकल ही नवीन
सकल ही बिमल
सुनील आकाश श्यामल कानन
विषद जोछोना कुसुम कोमोल
सकलई आमारी मोतो तारा केबली हाशे केबली हाये
हाशिया खेलिया मोरिते चाये
नाजानी बेदोन न जानी रोदन न जानी शादेर यातना जोतो
फूल से हाशिते हाशिते झोरे
जोछोना हाशिया मिलाये जाये
हाशिते हाशिते आलोक सागरे आकाशेर तारा तियाघिकाए
आमार मोतो सुखि के आछे आये सखी आये तोरा आमार काछे
सुखी हृदयेर सुखेर गान सुनिया तोदेर जोड़ाबे प्रान
प्रोतिदीन जोदि काँदीबी केबोल एक दिन आये हाशीबी तोरा
एक दिन आये बिषादो भूलिया
सोकोले मीलिया गाहिबो मोरा
भाबोना काहारे बोले सखि यातना काहारे बौले

Tuesday, March 10, 2009

सरर सरर


महावीर जी के ब्लाग पर होली के नाना रंग बिखरे हैं इस होली पर। वहाँ प्रकाशित है मेरा ये गीत, मगर फिर भी होली के इस अवसर पर एक बार फिर ये गीत यहाँ भी सुनिये-







सरर सरर सर मारी पिचकारी
ऐसा रंग डारा पी ने
मैं तन मन हारी

बइयाँ खींची मोरी
पकड़ी कलाई
गुलाल मले मुख पे जो
छूटी रुलाई
भीगी चोली और घाघर मोरी
खेलूँ कैसे मैं पी संग होरी

समझे न पी मोरी
इक भी बात
घर कैसे जाऊँ

रंग लै के साथ
जाने जग सारा मैंने लाज तो छोड़ी
पर कैसे खेलूँ मैं पी संग होरी



होली २००९ की बहुत बहुत शुभकामनायें।

Sunday, February 15, 2009

दो रवीन्द्र संगीत- (प्रेम)


आज दो रवीन्द्र संगीत पेश हैं- बहुत मधुर। इच्छा तो यही थी कि इनका हिन्दी में रूपांतरण करके लिखूँ, मगर ट्रांसलेट करते हुये लगा कि मैं इनके साथ न्याय नहीं कर पाऊँगी। अत: इन्हें ऐसे ही सुनें-

पहला मेरा सबसे प्रिय गीत-

मैंने तुम्हारे संग बाँधे हैं अपने प्राण सुरों के बंधन में
तुम जानो ना, मैंने पाया है तुम्हें कितने साधनों से

आमि तोमारो शौंगे बेंधेछि आमारो प्राण शूरेरो बाँधोने
तूमि जानोना आमि तोमारे पेयेछि अजाना शाधोने


दूसरा गीत

उस दिन दोनों झूमे थे बन में, फूलों के डोर में बंधे झूलना

शे दिन दू जोने दूले छिनु बोने फूलो डोरे बाँधा झूलोना

Saturday, January 03, 2009

संध्या मुखर्जी और उनके गीत


संध्या मुखर्जी, बंगाली फ़िल्मी संगीत में एक जाना माना नाम। उनकी सधी, मधुर आवाज़, उन दिनों जब कि कोई भी डिजिटल या कम्प्यूटर पर गाने रिकार्ड नहीं होते थे, बस असाधारण आवाज़।

उन्होंने अपनी संगीत की विधिवत शिक्षा पं संतोष कु. बासु, ए. कानन, चिन्मय लाहिड़ी से ली। उ. बड़े गु़लाम अली खां और उनके सुपुत्र मुनव्वर खां भी उनके गुरु रहे। उन्होंने हेमंत मुखर्जी के साथ बहुत सारे गाने गाये। उनकी आवाज़ सुचित्रा सेन पर बहुत ज़्यादा फ़िल्माई गई। हिन्दी फ़िल्मों में उनके द्वारा गाया हुआ ममता का गीत तोसे नैना लागे रे सांवरिया प्रसिद्ध हुआ।

आज सुनते हैं पहले एक हिन्दी गीत उनके द्वारा गाया ’आ गुपचुप गुपचुप प्यार करें’, फिर दो बंग्ला गीत संध्या मुखर्जी की ही आवाज़ में। बस मन मोह लेती है उनकी आवाज़।

(साभार- यू ट्यूब)

आ गुपचुप गुपचुप प्यार करें
फ़िल्म-सज़ा




आमी जे जलशा घरे
फ़िल्म- ऐन्टनी फ़िरंगी
फ़िल्माया गया- तनुजा पर



गाने मोर
फ़िल्म: अग्नि परीक्षा
फ़िल्माया गया- उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन पर

Wednesday, December 24, 2008

बड़े दिन की शुभ कामनायें


सभी को बड़े दिन की शुभ कामनायें। आज अपने अंग्रेज़ी ब्लाग पर जब मेरे पसंदीदा क्रिसमस के गाने पोस्ट किये तो लगा क्यों न यहाँ भी उन गानों को पोस्ट किया जाये। आप सब भी आनंद उठायें- (किसी भी गाने को अलग से सुनने के लिये उस गाने पर क्लिक करें)



Saturday, December 20, 2008

आज का दिन- यूँ ही ब्लागिंग और रब ने बना दी जोड़ी

कल की २० से.मी. गिरती बर्फ़ में घर वापस आ कर भगवान का फिर शुक्रिया अदा किया कि एक बार फिर सही सलामत घर पहुँच गए, ऐसे मौसम में। आज का दिन साफ़ सुथरा, सुंदर धूप, और कल का फ़ोरकास्ट है फिर १० से.मी. बर्फ़। यानि कि आज का दिन था घूमने फिरने का। क्रिसमस की छुट्टियाँ शुरु हो चुकी हैं। हर जगह जिंगल बेल्स सुनाई दे रहा है। ’व्हाइट क्रिसमस’ की चाह रखने वाले ख़ुशी मना रहे हैं।

आज का दिन बहुत अच्छा बीता। आज मैं पाकिस्तान के मशहूर कम्पोज़र सोहेल राणा साहब से मिली और जनवरी से वो मुझे गज़ल गाने की तालीम देंगे। ये बहुत ख़ुशी की बात है मेरे लिये।

मैं और वो घूमते हुये, आज अचानक ही प्लान बना लिया शाहरुख़ की नई फ़िल्म ’रब ने बना दी जोड़ी’ देखी जाये। हम दोनों के बीच का डील है कि हम दोनों उनकी पसंद की एक फ़िल्म देखेंगे तो फिर उसके बाद एक मेरी पसंद की फ़िल्म देखेंगे। अब उन्हें "जेम्स बांड" पसंद है और मुझे "हम दिल दे चुके सनम" टाइप्स। तो इस डील के चलते वो ’प्राइड ऐंड प्रीज्यूडि़स’ देख चुके हैं (बोर हो कर..बिचारे) और मैं ’कसीनो रायल’...(बाप रे!)। तो खै़र, आज हमने मेरी पसंद की मूवी देखी। लकिली, दोनों को अच्छी लगी ये फ़िल्म। मुझे अफ़ कोर्स उनसे ज़्यादा। इस फ़िल्म का रिव्यू काफ़ी लोग लिख चुके हैं, मैं अलग से नहीं लिखूँगी, पर इतना कहूँगी- एक अच्छी फ़िल्म, देखने लायक। ’हौले हौले’ गाना बहुत अच्छा लगता है मुझे और उस फ़िल्म में इस गीत के वक़्त मुझे तो ज़ोर ज़ोर से गाने और ताल के साथ साथ ताली बजाने का मन हुआ, पर यहाँ लोग इतने ज़्यादा सोबर हैं, कि सब शांति से पिकचर देखते रहे। तो ख़ैर, फ़ुल एन्टर्टेनमेंट, बहुत मज़ा आया देख कर इसे। ज़रूर देखें।

Wednesday, December 17, 2008

खो गई है ...

आज एक ग़ज़ल एक बहुत प्यारे दोस्त के लिये।




दूसरी गज़ल ढूँढ रही हूँ, मिल गई तो जल्द ही अपलोड करूँगी।

Sunday, November 30, 2008

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं






बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं

तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं

मेरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जानो ईमां हैं
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं

फ़िराक़ अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर
कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं

(कुछ और शेर इसी ग़ज़ल के)

खु़द अपना फ़ैसला भी इश्क़ में काफ़ी नहीं होता
उसे भी कैसे कर गुज़रें जो दिल में ठान लेते हैं

हमारी हर नज़र तुझसे नई सौगंध खाती है
तो तेरी हर नज़र से हम नया पैग़ाम लेते हैं

--फ़िराक़ गोरखपुरी

(आवाज़ जगजीत-चित्रा)

Monday, November 24, 2008

मेरा प्यार- अचला दीप्ति कुमार

अचला जी यहीं रहती हैं, टोरांटो में, महादेवी वर्मा जी से विरासत में ही कविता मिली है उन्हें। महादेवी वर्मा जी की भांजी हैं अचला जी। एक अच्छी कवियित्री ही नहीं बल्कि एक बहुत बहुत सुलझी हुई इंसान, जिनके साथ घंटों बात कर के भी मेरा मन नहीं भरता। बहुत अच्छी टीचर, जिनके लिखे कुछ संस्मरण आँखों में आँसू ला देते हैं।

उन की एक कविता मुझे बहुत ही प्रिय है, जो मैं पहले भी पोस्ट कर चुकी हूँ, आज फिर कर रही हूँ।

एक बार मैंने उनसे पूछा, "ये कविता मुझे इतनी क्यों पसंद आती है अचला जी, मेरे ख़याल से ये मेरी प्रिय कविताओं की लिस्ट में सर्वोपरि है।"

उन्होंने समझाया, " शायद इसलिये मानोशी, क्योंकि ये कविता हमारे व्यक्तित्व के क़रीब है। कोई भी कविता तुम देखना हमें तब बहुत अच्छी लगती है जब वो हमारे जैसी हों. हमारे भावनाओं का उद्गार हो।" सच है शायद...


पेश है फिर से एक बार, इस बार आवाज़ में-




मेरा प्यार

टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे,
हो किसी का प्यार लेकिन , प्यार वो मेरा नहीं है।

रख नहीं पाया मान निज जो, प्यार वो कैसे करेगा?
हीनता से ग्रस्त है जो, दीनता ही दे सकेगा।
द्वार पर तेरे खड़ा हूँ, स्नेह का लेकर निमंत्रण,
एक चुटकी भीख को यह दीन का फेरा नहीं है।
हो किसी का प्यार लेकिन, प्यार वो मेरा नहीं है।

है विदित, होती रही है प्यार की उद्दाम धारा,
बँध सके जो बंधनों से और ना निज कूल से
राह में अवरोध कोई सर उठाये,
यह बहा दे, तोड़ दे, ढाये उखाड़े मूल से
है अगर यह प्यार तो आश्वस्त हूँ मैं
इस प्रभंजन ने प्रबल, यह मन मेरा घेरा नहीं है।
हो किसी का प्यार लेकिन प्यार वो मेरा नहीं है।

प्यार है ले बहे जो, मन्द मन्धर गति निरंतर,
जी उठे स्पर्श पाकर हाँफ़ती मरुभूमि बंजर।
मान रखता, मान देता, मधुर मंगल रूप कोमल,
प्यार का जो स्वप्न मेरा क्या वही तेरा नहीं है?
टेक कर घुटने, झुका सिर, प्रेम का जो दान माँगे,
हो किसी का प्यार लेकिन , प्यार वो मेरा नहीं है।

Sunday, November 23, 2008

जोदी मोने पोड़े शे दीनेर कथा- विश्वदेव चटर्जी की आवाज़


विश्वदेव चटर्जी की आवाज़ में- बंग्ला गीत- जोदी मोने पोड़े शे दीनेर कथा- (नीचे हिन्दी मॆं मैंने सार लिखने की कोशिश की है इस गाने की, किसी त्रुटि के लिये अग्रिम क्षमा प्रार्थना के साथ)


https://www.youtube.com/watch?v=hNBbvUHIA_I

जोदी मोने पोडे़ शे दिनेर कथा
आमारे भूलीयो प्रीयो
नयन सलिले स्मृति्रो काजल
मूछिया नियो गो प्रीयो

मोर देवा माला हेरी
जोदी ब्यथा आशे घेरी
रातूलो चरणे शे माला दोलियो
किछू न कोहिबो प्रीयो

परानो मुकुर ओपोरे
मोर छाया जोदी पोडे
आर कोनो छोबि हृदौये आंकिया
तारी ध्याने थेको गो प्रीयो

हिन्दी में सार-

कभी ’गर याद आये उस दिन की
मुझे भूल जाना प्रिये
आंखों के पानी से स्मृतियों का काजल
पोंछ लेना ओ प्रिये

मेरी दी हुई माला देख कर
कभी अगर दर्द ने घेर लिया तब
अपने चरणों से उस माला को कुचल देना
मैं कुछ नहीं कहूँगा प्रिये

अगर कभी अपने प्राणों के आईने में
भूले से मेरा प्रतिबिंब पड़ जाये
तब कोई और छवि हृदय में बना कर
उसी के ध्यान में रहना ओ प्रिये

मुझे भूल जाना प्रिये...

Friday, November 21, 2008

का करूँ सजनी...

पापा, आपको बहुत याद कर रही हूँ आज, जाने क्यों... सोचा था आपसे, मां से मिलना होगा इस साल, पर नहीं हो पायेगा...अब क्या पता कब हो फिर मिलना।

दो गीत, बड़े ग़ुलाम अली ख़ां के, जो बचपन से सुनती आई हूँ आपके छोटे से टेप रिकार्डर पर- आज पोस्ट कर रही हूँ, आपके लिये। विश्वदेव चटर्जी का- "जोदी मोने पोड़े शे दिनेर कथा, आमारे भूलियो प्रियो...” - उसे किसी और दिन पोस्ट करूँगी। कितना अच्छा गाते हैं आप पापा, इन सब के गाने...बस सुनहरी यादें हैं बचपन की, आपके गानों की, आपकी मधुर आवाज़ की और कई बार मां के साथ आपके डूएट गानों की...इस बार जब भी घर जाऊँगी, वो सब पुरानी यादों के कैसेट ले आऊँगी, यादों में हमेशा संजो कर रखने के लिये-

याद पिया की आये, ये दुख सहा न जाये...



का करूँ सजनी आये न बालम...

Sunday, November 16, 2008

मीना कुमारी की आवाज़ में- उनकी एक ग़ज़ल

पारुल के ब्लाग पर मीना कुमारी की नज़्म पढ़ी। उनकी आवाज़ में कुछ रिकार्डिंग्स हैं मेरे पास जो मुझे अनूप भार्गव से मिली हैं। अनूप दा का शुक्रिया ऐसे तोहफ़े के लिये।

मीनाकुमारी की एक ग़ज़ल मीना कुमारी की आवाज़ में ही-



पूरी ग़ज़ल-

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौग़ात मिली

रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली

जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली

मातें कैसी घातें क्या, जलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली

होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा सी जो बात मिली

Saturday, November 15, 2008

क्या फ़र्क़ पड़ता है- प्यार का पहला ख़त

कैराओके के साथ गाना कभी रिकार्ड नहीं किया, पर फ़ितूर है, न मिक्सिंग का कोई ज्ञान, न ही माइक अच्छा...फ़्लू...पर क्या फ़र्क़ पड़ता है...मन को जो अच्छा लगे वो करो...

मेरी पसंदीदा ग़ज़ल (जगजीत सिंह जी से माफ़ी के साथ, उनके इस गाने को बिगाड़ने के लिये)

और प्लीज़ प्लीज़, क्रिटिक के कानों से न सुनें...

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प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नये परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है

जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लंबी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है

गाँठ अगर लग जाये तो फिर रिश्ते हो या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है

हमने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है

Friday, November 07, 2008

पायलिया झंकार मोरी...

शाम ढल रही है, तेज़ धूप से थका दिन, अब आराम चाहता है। बहुत थक चुका है, दौड़ धूप, छल कपट से निहाल, अब थोड़ी देर का चैन... रात की गोद में सांस लेना चाहता है।

दूर तैरती आवाज़ ...पायलिया झंकार मोरी...राग पूरिया-धनश्री दिन ढलने का संदेश देती है...एक पिंजरे में फड़फड़ाते पंछी को देख कर मन दु:खी हो कि खु़श... उस मैना की छटपटाहट देख कर तड़पूँ... जो बंद है, जिसकी शाम और रात और दिन, सभी ऐसे ही बीतेंगे... या अपनी स्वतंत्रता पर गर्व करूँ?

भोर की किरण फूट रही है, मद्धम रोशनी...भोर हो रही है... मेरे घर के आंगन में तुलसी को पानी डालती हूँ... मन निश्चिंत है...

बहुत सुंदर ये गीत, राग पूरिया धनश्री में...पायलिया झंकार मोरी...

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