क्या आप ७० के दशक में पैदा हुये हैं? या ऐसा कहें कि ८०-९० के दशक में बड़े हो रहे थे...स्कूल जा रहे थे, कालेज जा (नहीं जा, बदले में फ़िल्म देखने) रहे थे?
तब तो -
- फ़ैंटम, मैंड्रेक, बहादुर (वो घोड़े पर...) आपके ड्रीम हीरो थे। आप अगर लड़की हैं, तो "प्रेत का विवाह" वाली कॉमिक (वेताल) कई बार पढ़ चुकी थीं। इसके अलावा, लोट-पोट, चंदामामा, चंपक, नंदन, चाचा चौधरी और साबू, मधुमुस्कान आपके प्रिय पत्रिकाओं में से हुआ करती थीं, और पढ़ाकुओं के लिये
कम्पिटीशन सक्सेस रिव्युह।
-अमर चित्रकथा दोस्तों से बदल बदल कर पढ़ना और उसकी सिरीज़ जमा करना आपके लिये गर्व की बात होती थी।
- कैमलिन ज्यामिती बाक्स और फ़्लोरा पेन्सिल आपको बर्थडे पर मिले होंगे।
-छुट्टी पर जाने का मतलब दादा-दादी या नाना नानी जी से मिलने जाना होता था।
-आइसक्रीम का मतलब आरेन्ज स्टिक या वनीला का कोन हुआ करता था। वाडीलाल, दिनशा आदि कुछ नये नाम आने लगे थे आइसक्रीम की दुनिया में।
-आपकी फ़ैमिली कार फ़ियट (या अम्बैसैडर) थी।
-उस गाड़ी में पर्दे लगे होते थे, सफ़ेद नेट के बने हुये, शायद मां के हाथों सीये हुये।
-शायद एक छोटा सा पंखा भी लगा हो गाड़ी मॆं।
-आप सर्कस देखने एक न एक बार तो ज़रूर गये होंगे जहाँ, झकमक कपड़ों में लड़कियाँ करतब दिखाती थीं, बौने जोकर बेसर पैर की बातें कर हँसाते थे और किसी बैट जैसी वस्तु से एक दूसरे के पीछे मारते थे।
-अगर आपके घर टी.वी. था तो चित्रहार के समय घर पर भीड़ जमा होना कोई नई बात नहीं थी। रविवार को शाम को दूरदर्शन पर सिनेमा और दोपहर को रीजनल मूवी (सबटाइटल्स के साथ) आप बड़े शौक़ से देखते थे। कृषिदर्शन क्यों दिखाते हैं आपको कभी समझ नहीं आया क्योंकि वो वक़्त आपको पढ़ाई करने के लिये बैठना पड़ता था । रविवार को सुबह दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत के वक़्त पूरे शहर में कर्फ़्यू लग जाता था।
-जे.बी रमन और सलमा सुलतान (बालों में गुलाब के फूल के साथ, बिना मुस्काये समाचार पढ़ते हुये) आपके घर के सदस्य बन बैठे थे। किसी नेता के देहांत हो जाने पर तीन दिन का शोक दूरदर्शन पर आपको बहुत पीड़ा देता था, जब सारे दिन बांसुरी और शास्त्रीय संगीत सुनना पड़ता था।
-इंदिरा गांधी का देहांत और राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन का टीवी पर उनकी अंतिम क्रिया पर दिखाया जाना, सीधा प्रसारण, घरों मॆं टीवी देखने वालों की भीड़, भूले नहीं होंगे आप।
-घर में मार्डर्न गजेट के नाम पर फ़्रिज, मिक्सी और टी.वी. हुआ करते थे।
-डिस्को दीवाने नाज़िया हसन के गानों के आप दीवाने थे।
-मां, पिताजी, स्कूल के टीचर से मार खाना कोई बड़ी बात नहीं थी।
-तस्वीरें खींचना/खिंचवाना बड़ी बात थी। ३६ फ़िल्मों वाले कैमेरा से या किसी स्टुडियो में जा कर परिवार सहित फ़ोटो खिंचवाई होगी आपने, जहाँ सभी सावधान की अवस्था में खड़े हों।
-थोड़े बड़े होने पर लड़कियाँ, मिल्स ऍन्ड बून्स पढ़ाई की किताबों के नीचे रख कर कभी तो पढ़ी होंगी।
-बिनाका/सिबाका गीत माला रेडियो पर सुनना....
यादें बहुत सी हैं...अभी बस इतना ही ...
(एक फ़ार्वर्डेड ईमेल से कई अंश लिये गये हैं, जिसने सचमुच पुराने दिन याद दिला दिये...)
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