प्रेम एशे छीलो नि:शब्दो चौरोने...
प्रेम आया था, नि:शब्द पांव से
तब स्वप्न लगा वो
नहीं दिया आसन
प्रेम आया था...
बिदाई ली जब उसने
आहट पा कर
गया था दौड़ कर
तब वो शब्द-काया विहीन
सुनसान रात में विलीन
दूर पथ पर ज्यों दीपशिखा
रक्तिम मरीचिका
प्रेम आया था..
बंग्ला में
प्रेम एशे छीलो नि:शब्दो चौरोने
ताई स्वप्नो मोने होलो तारे
दीनी ताहारे आसन
प्रेम एशे छीलो
बीदाए नीलो जोबे
शब्द पेये
गेनू धेये
से तोखुनो शब्द काया बिहीन
निशीतो तीमीरे बीलीन
दूरो पौथे दीप्शिखा
रक्तिम मोरीचीका
प्रेम एशे छीलो
दूसरा गीत-
आमारो परानो जाहा चाये ...
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मेरा प्राण जो चाहता है
तुम बस वही हो, ओ प्रिय!
तुम्हारे सिवा इस जगत में
मेरा कोई नहीं और
कुछ नहीं है, प्रिय!
तुम अगर सुख न पाओ,
तो सुख के संधान में जाओ
मैंने तो तुम्हें पाया है
हृदय मध्य
और कुछ नहीं चाहिये, ओ प्रिय!
मैं तुम्हारे विरह में रहूँगी विलीन
तुममें ही करूँगी वास
दीर्घ दिवस, दीर्घ रजनी, दीर्घ बरस मास,
यदि किसी और से प्रेम करो
यदि और कभी न फिर सको
तब तुम जो चाहो, वही तुम्हें मिले
मैं जितने भी दुख पा लूँ, ओ प्रिय!
बंग्ला में
आमारो परानो जाहा चाये
तूमी ताई, तूमी ताई गो!
तोमा छाड़ा आर जोगोते मोरा केहो नाई
किछू नाई गो!
तूमी सुख जोदी नाही पाओ
जाओ सुखेरो संधाने जाओ
आमि तोमारे पेयेछि हृदयो माझे
आर कीछू नाहि चाई गो
आमी तोमारी बीरोहे रोइबो बिलिन
तोमाते कोरीबो वास
दीर्घो दीबौशो, दीर्घ रौजौनी, दीर्घो बरौशो माश
जोदी आरो कारे भालोबाशो जोदी आर फीरे नाही आशो
तोबे तूमि जाहा चाओ ताहा जैनो पाओ
आमि जोतो दूखो पाई गो!