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Wednesday, June 02, 2010

दो रवीन्द्र संगीत- प्रेम एशे छीलो/आमारो परानो जाहा चाये...

रवीन्द्र संगीत की शृंखला में आज, दो और गीत।  भावानुवाद करने की कोशिश की है। किसी त्रुटि के लिये अग्रिम क्षमा याचना के साथ।

प्रेम एशे छीलो नि:शब्दो चौरोने...



प्रेम आया था, नि:शब्द पांव से
तब स्वप्न लगा वो
नहीं दिया आसन
प्रेम आया था...

बिदाई ली जब उसने
आहट पा कर
गया था दौड़ कर
तब वो शब्द-काया विहीन
सुनसान रात में विलीन
दूर पथ पर ज्यों दीपशिखा
रक्तिम मरीचिका
प्रेम आया था..

बंग्ला  में
प्रेम एशे छीलो नि:शब्दो चौरोने

ताई स्वप्नो मोने होलो तारे
दीनी ताहारे आसन
प्रेम एशे छीलो

बीदाए नीलो जोबे
शब्द पेये
गेनू धेये
से तोखुनो शब्द काया बिहीन
निशीतो तीमीरे बीलीन
दूरो पौथे दीप्शिखा
रक्तिम मोरीचीका
प्रेम एशे छीलो

दूसरा गीत-

आमारो परानो जाहा चाये ...

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मेरा प्राण जो चाहता है
तुम बस वही हो, ओ प्रिय!
तुम्हारे सिवा इस जगत में
मेरा कोई नहीं और
कुछ नहीं है, प्रिय!

तुम अगर सुख न पाओ,
तो सुख के संधान में जाओ
मैंने तो तुम्हें पाया है
हृदय मध्य
और कुछ नहीं चाहिये, ओ प्रिय!

मैं तुम्हारे विरह में रहूँगी विलीन
तुममें ही करूँगी वास
दीर्घ दिवस, दीर्घ रजनी, दीर्घ बरस मास,
यदि किसी और से प्रेम करो
यदि और कभी न फिर सको
तब तुम जो चाहो, वही तुम्हें मिले
मैं जितने भी दुख पा लूँ, ओ प्रिय!

बंग्ला में

आमारो परानो जाहा चाये
तूमी ताई, तूमी ताई गो!
तोमा छाड़ा आर जोगोते मोरा केहो नाई
किछू नाई गो!

तूमी सुख जोदी नाही पाओ
जाओ सुखेरो संधाने जाओ
आमि तोमारे पेयेछि हृदयो माझे
आर कीछू नाहि चाई गो

आमी तोमारी बीरोहे रोइबो बिलिन
तोमाते कोरीबो वास
दीर्घो दीबौशो, दीर्घ रौजौनी, दीर्घो बरौशो माश
जोदी आरो कारे भालोबाशो जोदी आर फीरे नाही आशो
तोबे तूमि जाहा चाओ ताहा जैनो पाओ
आमि जोतो दूखो पाई गो!

Saturday, May 09, 2009

रवीन्द्र जयंती पर- भालोबाशा भालोबाशा

आज रवीन्द्र जयंती पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का ये गीत प्रस्तुत है। (इसके भावार्थ की मैंने हिन्दी में अनुवाद की चेष्टा की है)।



यू-ट्यूब से मुझे एक विडियो भी मिला इस गाने का। फ़िल्म श्रीमान पृथ्वीराज-


हिन्दी में अनुवाद

सखी चिंता (भावना) किसे कहते हैं
सखी यातना किसे कहते हैं
तुम जो कहते हो दिन रात
प्रेम...प्रेम...
प्रेम क्या है
क्या ये सिर्फ़ पीड़ादायी है?
वो क्या केवल ही आँखों का पानी है
क्या वो केवल दुख का है श्वास
तब क्यों लोग सुख छोड़ कर
करते हैं ऐसे दुख की आस ?

मेरे आँखों में तो सभी सुंदर है
सभी नूतन है, सभी विमल
सुनील आकाश, श्यामल कानन
विशद ज्योत्सना, कुसुम कोमल
ये सभी मेरे जैसे केवल हँसते हैं
हँस खेल के मरने की इच्छा रखते हैं
न मैं वेदना जानती हूँ न ही रोना
न ही शौक़ की यातना कोई
फूल जैसे हँसते हँसते झर जाते हैं
जैसे ज्योत्सना भी हँस कर मिल जाती है
हँसते हँसते ही तारे भी आकाश से गिर जाते हैं

मेरे जैसा सुखी कौन है
आओ सखी आओ मेरे पास
मेरे सुखी हृदय के सुख गान सुन कर
तुम्हारे हृदय खिल उठेंगे
जो प्रतिदिन तुम रोती हो
एक दिन आओ और हँसो
एक दिन सब विषाद भुला कर आओ
सब मिल कर हम गायें
सखी....

बंग्ला में-
सखी भावना काहारे बौले
सखी यातना काहारे बौले
तोमरा जे बौलो दिबोशो रजनी
भालोबाशा भालोबाशा
सखी भालोबाशा कारे कहे
शे की केबल-ई जातनामय
लोके कोरे कि सुखेरि तोरे
अमोनो दुखेरो आस
आमारी चोखे तो सकल ही शोभोन
सकल ही नवीन
सकल ही बिमल
सुनील आकाश श्यामल कानन
विषद जोछोना कुसुम कोमोल
सकलई आमारी मोतो तारा केबली हाशे केबली हाये
हाशिया खेलिया मोरिते चाये
नाजानी बेदोन न जानी रोदन न जानी शादेर यातना जोतो
फूल से हाशिते हाशिते झोरे
जोछोना हाशिया मिलाये जाये
हाशिते हाशिते आलोक सागरे आकाशेर तारा तियाघिकाए
आमार मोतो सुखि के आछे आये सखी आये तोरा आमार काछे
सुखी हृदयेर सुखेर गान सुनिया तोदेर जोड़ाबे प्रान
प्रोतिदीन जोदि काँदीबी केबोल एक दिन आये हाशीबी तोरा
एक दिन आये बिषादो भूलिया
सोकोले मीलिया गाहिबो मोरा
भाबोना काहारे बोले सखि यातना काहारे बौले

Sunday, September 07, 2008

आमार हीयार माझे- रवीन्द्र संगीत

ये रवीन्द्र संगीत मेरे सबसे प्रिय गानों में से एक है। इसका अनुवाद करने की कोशिश की है। इस गाने को आप यहाँ सुन सकते हैं।

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आमार हीयार माझे लूकिये छिले
देखते आमि पाइनी तोमाये
बाहिर पाने चोख मेलेछि
आमार हृदौये पाने चाइनी


आमार सकल भालो बाशाय
सकल आघात सकल आशाय
तुमि छिले आमार काछे
आमी तोमार काछे जाइनी


तुमी तो आनांदो होये छिले आमार खैलाय
आनंदे ताई भूले छिलेम केटेछे दीन हैलाय
गोपोन रोही गोभीर प्राने
आमार दुखो शुखेर गाने
शूर दियेछो तुमि
आमि तोमार गान तो गाइनि


अनुवाद

मेरे हृदय में तुम छुपे हुये थे
देख सका न तुम्हें कभी
बाहर ढूँढा मैंने तुम्हें
हृदय भीतर देखा नहीं


मेरे सभी प्रेम ओ’ प्रीति
सभी दर्द सभी आशा में
तुम रहे थे पास ही मेरे
नहीं गया मैं पास तुम्हारे


तुम ही तो आनंद बने रहे मेरे खेल में
आनंद में तब भूला हुआ मैं
मस्ती में दिन बिताये
छुपे रहे जो गहरे मन में
गीत में दुख भी , सुख ही बन के
तुम ही ने सुर सजाये
नहीं गाया मैं गीत तुम्हारे

Saturday, September 06, 2008

एक टुकु छोआँ लागे-रवीन्द्रसंगीत

आज एक दुस्साहस कर रही हूँ। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की रचनायें समझना बहुत कठिन लगता है मुझे। मगर जितना समझ आता है वो बहुत सुंदर होता है। मेरे एक प्रिय गाने का अनुवाद करने की कोशिश की है। छंद मे रह कर भाव के साथ न्याय करना, बहुत मुश्किल काम है। ये मेरा इस तरह का पहला प्रयास है। आगे भी और इस तरह के अनुवाद करने की इच्छा है।

http://www.youtube. com/watch? v=VGM-T5cME- 4

यहाँ जा कर आप इस रवीन्द्रसंगीत को सुन सकते हैं।

रवीन्द्र संगीत

एक टुकु छोआं लागे
एक टुकु कौथा शूनि
ताई दिये मोने मोने
रोची मोमो फाल्गुनी

किछू पौलाशेर नेशा
किछू बा चाँपाये मेशा
ताई दिये शूरे शूरे
रौंगे-रौशे जाल बुनी

जे टूकू काछे ते आशे
खनिकेर फाँके फाँके
चोकितो मोनेर कोने
श्वौपनेरछोबि आँके

जे टुकु जाये रे दूरे
भाबना काँपाये शूरे
ताई निये जाये बैला
नूपूरेरो ताल गूनी

अनुवाद:

स्थाई का भाव कुछ ऐसा है कि हल्की सी छुअन, थोड़ी सी बातें सुन कर मैंने अपने मन में बसंत को प्रवेश करने दिया है, वसंत (वसंत के भाव) रच रहा/रही हूँ। इसी आधार पर इस कविता का अनुवाद:


हल्की सी छुअन लगी
थोड़ी सी बातें सुनी
उन ही से मन में मेरे
रची मैंने फाल्गुनी


कुछ पलाश का नशा
कुछ चंपा गंध मिला
उन ही से सुर पिरोये
रंग ओ’ रस जाल बुने (स्वप्न जाल)


जो थोड़ा सा पास आते
क्षणों के बीच में से
चकित मन कोने में
स्वप्न के छवि बनाते

जो थोड़ी दूर भी जाते
भावना स्वर कँपाते
उन ही से दिन बिताये
नूपूर के ताल गिने


थोड़ी सी छुअन लगी...