मानसी
Friday, September 26, 2008
फिर सावन रुत
एक बहुत सुहानी ग़ज़ल, नासिर क़ाज़मी की, गु़लाम अली और आशा की आवाज़ में सुनिये।
फिर सावन रुत की पवन चली तुम याद आये
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी तुम याद आये
फिर कूंजें बोली घास के हरे समुंदर में
रुत आई पीले फूलों की तुम याद आये
पहले तो मैं चीख़ के रोया और फिर हँसने लगा
बादल गरजा बिजली चमकी तुम याद आये
फिर कागा बोला घर के सूने आँगन में
फिर अमृत रस की बूँदे पड़ीं तुम याद आये
दिन भर तो मैं दुनिया के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आये
2 comments:
Anonymous said...
सुन्दर! पढ़ लिया।
9:26 PM
nimish
said...
बहोत सुंदर सावन का गीत प्रस्तुत करनेके लिए धन्यवाद
7:46 AM
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2 comments:
सुन्दर! पढ़ लिया।
बहोत सुंदर सावन का गीत प्रस्तुत करनेके लिए धन्यवाद
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