रौद्र रूप में प्रचंड प्रकोपी
आया सूरज तेज दिखानेदुपहर के सूने मरुथल में
अलसाया सा गोते लगाने
संग अजगर सी लंबी सिसकी
लंबीं सांय सांय करती
लू लिपटाती अपनी जिह्वा
चारों दिक बाँहों में भरती
काँपती ठिठुरन पे अपनी
चमकाती तलवार चलाती
सूखे पत्तों के आंगन में
बेताला तांडव दिखलाती
दिन भर हाहाकार मचा कर
सारे जग को सता सता कर
सन्नाटे को और बढ़ा कर
गलियों में उत्पात मचाकर
नन्हें बालक की चोरी ज्यों
शाम को फिर पकडी जाती
आंखें तब चुपचाप झुका कर
सांध्य बयार में घुलमिल जाती
निकल पड़े जो पांव धूप के
विस्तृत फैले इस आंगन में
गरम हथेली ताप सेंकने
झुलस गया हाँ सारा जग ये
8 comments:
सूरज का सचित्र काव्यमय रौद्र-रूप पसन्द आया।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
नन्हें बालक की चोरी ज्यों
शाम को फिर पकडी जाती
आंखें तब चुपचाप झुका कर
सांध्य बयार में घुलमिल जाती
--वाह!! बहुत बेहतरीन तरीके से उकेरा है रौद्र रुप सूरज का!!
नन्हें बालक की चोरी ज्यों
शाम को फिर पकडी जाती
बिम्बो का अच्छा प्रयोग ---- बधाई
सुन्दर सूरज सौन्दर्य वर्णन!
ग्रीष्म का इतना सुन्दर शब्द चित्रण..वाह !! बहुत बहुत सुन्दर रचना...
शब्द सब के सब जैसे सचमुच का सूरज ले आये अपने विकराल रूप में...
रौद्र रूप प्रचंड प्रकोपी
आया सूरज तेज दिखाने
दुपहर के सूने मरुथल में
अलसाया सा गोते लगाने
Wow...the words u use are really amazing. Good Job!!
वाह...........सूर्य की अगन से लाल लाल झुलसे हुवे शब्द.............पूरा मौसम जैसे उधेड़ कर सामने रख दिया...........फिर शाम का ठंडा फाहा भी रख दिया..........बहूत ही उम्दा रचना
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