Friday, May 29, 2009

फ़र्क़- भाग २

इस विषय पर पहले इस लिंक पर कुछ तस्वीरें पोस्ट की थीं। आज एक बार फिर फ़र्क़

समय-समय का फ़र्क़ के अंतर्गत ही-

अक्तूबर में- सर्दी के लिये तैयार होते पेड़- एक दोपहर
सर्दी में ठिठुरते पेड़- जनवरी की एक दोपहर
गर्मी के आगमन पर वही रास्ते- स्वागत में हरियाली से नहाये हुये से पेड़

8 comments:

अमिताभ त्रिपाठी ’ अमित’ said...

Great Idea!
bahut achchh laga. MerI hi tarah sochatI ho. kahin ham vastav me pichhale jamn ke bhai-bahan to nahin hain.

सूर्य गोयल said...

मानसी जी किसी ने बहुत खूब कहा है की कला की कोई बिसात नहीं होती . आपने भी ऐसी की कला के दर्शन करवाए . कोई कला प्रकृति की देन है तो मानव के हाथ की . बधाई. बहुत अच्छी तस्वीरे दिखाई आपने . फर्क सिर्फ इतना है की आप जो कहना चाहती है वो तस्वीर के माध्यम से दिखा देती है और मैं गुफ्तगू के माध्यम से कह देता हूँ. आपका भी मेरे ब्लॉग पर स्वागत है . www.gooftgu.blogspot.com

सूर्य गोयल said...

मानसी जी किसी ने बहुत खूब कहा है की कला की कोई बिसात नहीं होती . आपने भी ऐसी की कला के दर्शन करवाए . कोई कला प्रकृति की देन है तो मानव के हाथ की . बधाई. बहुत अच्छी तस्वीरे दिखाई आपने . फर्क सिर्फ इतना है की आप जो कहना चाहती है वो तस्वीर के माध्यम से दिखा देती है और मैं गुफ्तगू के माध्यम से कह देता हूँ. आपका भी मेरे ब्लॉग पर स्वागत है . www.gooftgu.blogspot.com

गौतम राजऋषि said...

you have got superb eyes...

दिगम्बर नासवा said...

वाह..........मौसम के मिजाज़ को चित्रों के माध्यम से..............लाजवाब उतारा है आपने अपनी पोस्ट में.........शुक्रिया

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बडी़ अच्छी तस्वीरें है........
कलाकार जो भी करता है उसमें कला की झलक मिल ही जाती है..... आज इस ब्लाग पर पहली बार आया,बहुत अच्छा लगा.

Science Bloggers Association said...

आपकी कविताओं की तरह स्वच्छ और सुंदर तस्वीरें।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

निर्मल सिद्धु - हिन्दी राइटर्स गिल्ड said...

तस्वीरों के माध्यम से कविता करना तो मानोशी जी कोई आपसे सीखे। अलग-अलग भावों को दर्शाती ये तस्वीरें सचमुच बोलती हैं, बस सुनने की ललक चाहिये। बधाई हो...