जगत में झूटी देखि प्रीत अपने ही सुख सिउ सभ लागे क्या दारा क्या मीत मेरो मेरो सभे कहत है हित सिउ बाधियो चीत अंत काल संगी नहीं कोऊ इह अचरज की रीत मन मूरख अजहू नह समुझत सिख दे हारिएओ नीत नानक भौजल पारि परे जौ गावे प्रभ के गीत :२/३/६/३८/४७
अच्छी प्रस्तुति.....गुरु पूर्णिमा पर गुरु नानाक की वाणी सुनाने का शुक्रिया मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत । नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत ॥
9 comments:
जगत में झूटी देखि प्रीत
अपने ही सुख सिउ सभ लागे क्या दारा क्या मीत
मेरो मेरो सभे कहत है हित सिउ बाधियो चीत
अंत काल संगी नहीं कोऊ इह अचरज की रीत
मन मूरख अजहू नह समुझत सिख दे हारिएओ नीत
नानक भौजल पारि परे जौ गावे प्रभ के गीत :२/३/६/३८/४७
बहुत अच्छा लगा। कई बार सुना।
मै पहली बार आपकी कबिता पढ़ा
बहुत अच्छी प्रस्तुतु
धन्यवाद
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.
बहुत दिनों बाद सुना.
आभार.
सुन्दर ... धन्यवाद.
अच्छी प्रस्तुति.....गुरु पूर्णिमा पर गुरु नानाक की वाणी सुनाने का शुक्रिया
मन मूरख अजहूँ नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत ।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत ॥
Divine! Thanks!
गुरुवाणी सुनने के साथ साथ गुनने के लिये भी होती है ।
अच्छा लगा यह भजन।
मेरो मेरो सभी कहत है, हित सों बाध्यो चीत ।
अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत ॥
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