आपकी आँखों में मुझ को मिल गई है ज़िंदगी
सहरा-ए-दिल में कोई बाक़ी रही ना तश्नगी
रात के बोसे का शम्मे पर असर कुछ यूँ हुआ
उम्र भर पीती रही रो-रो के उस की तीरगी
उससे मिलके एक तुम ही बस नहीं हैरां कोई
है गली-कूचा परेशां देख ऐसी सादगी
आजकल दिखने लगा है मुझको अपना अक़्स भी
आजकल क्या आइना भी कर रहा है दिल्लगी
झुक गया हूँ जब से उसके सजदे में ऐ ’दोस्त’ मैं
उम्र बन के रह गई है बस उसी की बंदगी
सहरा-ए-दिल में कोई बाक़ी रही ना तश्नगी
रात के बोसे का शम्मे पर असर कुछ यूँ हुआ
उम्र भर पीती रही रो-रो के उस की तीरगी
उससे मिलके एक तुम ही बस नहीं हैरां कोई
है गली-कूचा परेशां देख ऐसी सादगी
आजकल दिखने लगा है मुझको अपना अक़्स भी
आजकल क्या आइना भी कर रहा है दिल्लगी
झुक गया हूँ जब से उसके सजदे में ऐ ’दोस्त’ मैं
उम्र बन के रह गई है बस उसी की बंदगी
फ़ाइलातुन x3 फ़ाइलुन
(बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़)
13 comments:
मानसी जी आपने गजल में रदीफ़ नहीं रहा है फिर भी गजल बहुत खूबसूरत बनी है
ये शेर ख़ास पसंद आया
झुक गया हूँ जब से उसके सजदे में ऐ ’दोस्त’ मैं
उम्र बन के रह गई है बस उसी की बंदगी
आपका वीनस केसरी
रात के बोसे का शम्मे पर असर कुछ यूँ हुआ
उम्र भर पीती रही रो-रो के उस की तीरगी
-यह शेर तो बहुत ही सुन्दर लिखा है मानसी जी.
-खूब कही है यह ग़ज़ल!
मानोशी जी,
बहुत सुन्दर गजल ..मन को छूने वाली ...
पूनम
झुक गया हूँ जब से उसके सजदे में ऐ ’दोस्त’ मैं
उम्र बन के रह गई है बस उसी की बंदगी
लाजवाब है. यूं ही कहती रहें.
संजीव गौतम
आजकल दिखने लगा है मुझको अपना अक़्स भी
आजकल क्या आइना भी कर रहा है दिल्लगी
-अच्छा जी ये इस तरह ख्याल..बढ़िया है बेरदीफ़ उम्दा गज़ल..असर जानकार जानें मगर हमें भाई!! तो बधाई.
MANASI JI IS BE-RADIF GAZAL KE KYA KAHANE KHAASA PASAND AAYEE YE GAZAL.. BAHOT HI KHUBSURATI SE LIKHAA HAI AAPNE... DHERO BADHAYEE
ARSH
बहुत खूब....उम्दा अंदाज-ए-बयाँ...
साभार
हमसफ़र यादों का.......
आजकल दिखने लगा है मुझको अपना अक़्स भी
आजकल क्या आइना भी कर रहा है दिल्लगी
यूँ तो पूरी ग़ज़ल दमदार है.........पर इस शेर ने सीधे असर किया है..........लाजवाब मानसी जी
"रात के बोसे का शम्मे पर असर कुछ यूँ हुआ/उम्र भर पीती रही रो-रो के उस की तीरगी"
...ये शेर तो जैसे लगता है खुद आसमान से उतर कर आया है।
लाजवाब है मानोशी
ITS A BEAUTIFUL BUT IT MAY BE GOOD GAZAL
TRY THIS WAY MANSI
AAPKI AANKHO ME MUJHKO ZINDGI AATI NAZAR
SEHRA-E-DIL ME TO AB NA TISNAGE AATI NAZAR
सभी का शुक्रिया ग़ज़ल को पसंद करने का।
जसबीर जी, आपका इशारा रदीफ़ की तरफ़ है। मगर इस तरह की ग़ज़ल जिस में रदीफ़ न हो, उसे ग़ैर-मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं और उसे लिखना भी जायज़ है।
बहुत खुबसूरत है तेरी बातें.
तेरे अश्क में दिखती है कई रातें
namaskar maansi ,
aapne bahut sundar gazal kahi hai .. haalanki mujhe gazal ki technicalities jyada samjhti nahi hai ,... phir bhi padhne me bahut accha laga.. bhaavo ki sahi abhivyakti hai .. is gazal ke liye badhia sweekar karen..
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad bhare comment ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
vijay
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