Thursday, May 21, 2009

बदलाव -बस यूँ ही

बदलाव ज़िंदगी का एक तरीका है। तरीका ख़ुद-ब-ख़ुद उलझ जाने का और उलझ कर फिर खू़बसूरती से सुलझ जाने का। हर उलझाव के साथ खुलते हैं कुछ गिरह और हर सुलझाव ले आता है एक सवाल। जवाब के इंतज़ार में एक लंबे ख़ामोश पल के बाद पीछे दरवाज़ा बंद होता है। और फिर खुलता है एक नियम और हम बंध जाते हैं उस नये नियम में।

हाँ, ये भी ज़िंदगी का एक तरीका है...

जगजीत सिंह की आवाज़ का जादू...

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जीवन क्या है, चलता फिरता एक खिलौना है
दो आँखों में एक से हँसना एक से रोना है

चलते चलते राह में यूँ ही रस्ता मुड़ जाता है
अनजाने में अनजाने से रिश्ता जुड़ जाता है
किसे पता है किस रस्ते में कब क्या होना है

बीत गया जो वो हर पल आगे क्यों चलता है
राख हुये अंगारे कब के फिर भी दिल जलता है
भूली बिसरी यादों को अश्कों से धोना है

जो जी चाहे वो मिल जाये कब ऐसा होता है
हर जीवन जीवन जीने का समझौता होता है
अब तक जो होता आया है वो ही होना है

रात अंधेरी भोर सुनहरी यही ज़माना है
हर चादर में सुख का ताना दुख का बाना है
आती सांस को पाना जाती साँस को खोना है

7 comments:

श्यामल सुमन said...

सुन्दर।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Udan Tashtari said...

आह!! आह!! अह!....क्या गज़ल सुना दी..अब दो दिन इसी मूड में गुजरेंगे... यूँ भी और काम क्या है!! :)

नीरज गोस्वामी said...

बहुत दिनों बाद सुना इसे...आनंद आ गया...शुक्रिया...
नीरज

RAJNISH PARIHAR said...

वाह भाई वाह मज़ा आ गया..बहुत ही अच्छी रचना है....सुन कर भी अच्छा लगा....

दिगम्बर नासवा said...

लाजवाब है...........हर शेर मधुर.............बस सुनते रहो........शुक्रिया

pushpendrapratap said...

bahut sunder

निर्मल सिद्धु - हिन्दी राइटर्स गिल्ड said...

बहुत ही मधुर व कर्णप्रिय